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________________ अलङ्कार ११३ चौथा अर्थसिद्धि प्रतान है। इसमें १. अलंकाराभ्यास, २. वार्थोत्पत्ति, ३. आकारार्थोत्पत्ति, ४. क्रियार्थोत्पत्ति, ५. प्रकीर्णक, ६. संख्या नामक और ७. समस्याक्रम-इस प्रकार सात स्तबक २९० श्लोक-बद्ध सूत्रों में हैं। - कवि-संप्रदाय की परंपरा न रहने से और तद्विषयक अज्ञानता के कारण कविता की उत्पत्ति में सौंदर्य नहीं आ पाता। उस विषय की साधना के लिये आचार्य अमरचन्द्रसूरि ने उपर्युक्त विषयों से भरी हुई इस 'काव्यकल्पलता-वृत्ति' की रचना की है। __कविता-निर्माण-विधि पर राजशेखर की 'काव्य-मीमांसा' कुछ प्रकाश अवश्य डालती है परंतु पूर्णतया नहीं। कवि क्षेमेन्द्र का 'कविकण्ठाभरण' मूल तत्त्वों का बोध कराता है परंतु वह पर्याप्त नहीं है। कवि हलायुध का 'कविरहस्य' सिर्फ क्रिया-प्रयोगों की विचित्रताओं का बोध कराता है इसलिए वह भी एकदेशीय है। जयमंगलाचार्य की 'कविशिक्षा' एक छोटा-सा ग्रंथ है अतः वह भी पर्यात नहीं है। विनयचंद्र की 'काव्य-शिक्षा में कुछ विषय अवश्य है परंतु वह भी पूर्ण नहीं है। इससे यह स्पष्ट है कि काव्य-निर्माण के अभ्यासियों के लिये अमरचन्द्रसूरि की 'काव्यकल्पलता-वृत्ति' और देवेश्वर की 'काव्यकल्पलता' ये दोनों ग्रन्थ उपयोगी हैं। देवेश्वर ने अपनी काव्यकल्पलता की अमरचन्द्रसूरि की वृत्ति के आधार पर संक्षेप में रचना की है। आचार्य अमरचन्द्रसूरि ने सरस्वती की साधना करके सिद्धकवित्व प्राप्त किया था। उनके आशुकवित्व के बारे में प्रबन्धों में कई बातें उल्लिखित हैं। जब आचार्य अमरचंद्रसूरि विशलदेव राजा की विनती से उनके राजदरबार में आये तब सोमेश्वर, सोमादित्य, कमलादित्य, नानाक पंडित वगैरह महाकवि उपस्थित थे। उन सभी ने उनसे समस्याएँ पूछी। उस समय उन्होंने १०८ समस्याओं की पूर्ति की थी जिससे वे आशुकवि के रूप में प्रसिद्ध हुए। नानाक पंडित ने 'गीतं न गायतितरां युवतिर्निशासु' यह पाद देकर समस्या पूर्ण करने को कहा तब अमरचंद्रसूरि ने झट से इस प्रकार समस्यापूर्ति कर दी : १. प्रथम प्रतान के पांचवें स्तबक का 'असतोऽपि निबन्धेन' से लेकर 'ऐक्यमेवा भिसंमतम्' तक का पूरा पाठ देवेश्वर ने अपनी 'काव्यकल्पलता' में लिया है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002098
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 5
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhujbal Shastri, Minakshi Sundaram Pillai
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1993
Total Pages336
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Literature, & Grammar
File Size12 MB
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