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जैन साहित्य का बृहद् इतिहास
इस ग्रंथ में ५ परिच्छेद हैं । कुल २६० पद्य हैं। अधिकांश पद्य अनुष्टुप में हैं । परिच्छेद के अन्त में कतिपय पद्य अन्य छंदों में रचे गये हैं। इसमें ओजगुण ( ३.१४ ) का चित्रण करनेवाला एकमात्र गद्य का अवतरण है 1
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प्रथम परिच्छेद में काव्य का लक्षण, काव्य की रचना में प्रतिभाहेतु का निर्देश, प्रतिभा, व्युत्पत्ति और अभ्यास की व्याख्या, काव्यरचना के लिये अनुकूल परिस्थिति और कवियों का पालन करने के नियमों की चर्चा है ।
दूसरे परिच्छेद में काव्य की रचना संस्कृत, प्राकृत, अपभ्रंश और भूतभाषा – इन चार भाषाओं में की जा सकती है, यह वर्णित है । काव्य के छन्द - निबद्ध और गद्य-निबद्ध – ये दो तथा गद्य, प्रकार के भेद किये गये हैं। इसके बाद पद और का उदाहरणों के साथ विवेचन करके तीसरे परिच्छेद में काव्य के दिये गये हैं ।
पद्य और मिश्र – ये तीन वाक्य के आठ दोषों के लक्षण अर्थ- दोषों का निरूपण किया गया है। दस गुण और लक्षण उदाहरणसहित
चौथे परिच्छेद में चित्र, वक्रोक्ति, अनुप्रास और यमक-इन चार शब्दालंकारों तथा उनके उपभेदों का, ३५ अर्थालंकारों और वैदर्भी तथा गौडीया - इन दो रीतियों का विवेचन किया गया है ।
पांचवें परिच्छेद में नौ रस, नायक और नायिकाओं के भेद और तत्सम्बन्धी अन्य विषयों का निरूपण है ।
इस ग्रन्थ में जो उदाहरण दिये गये हैं वे सब कर्ता के स्वरचित मालूम पड़ते हैं । चतुर्थ परिच्छेद के ४९, ५३, ५४, ७४, ७८, १०६, १०७ और १४८ संख्यक उदाहरण प्राकृत में हैं। इसमें 'नेमिनिर्वाण - काव्य' के छः पद्य उद्धृत हैं। १. वाग्भटालङ्कार-वृत्ति :
आचार्य सोमसुंदरसूरि ( स्व० वि० सं० १४९९ ) के संतानीय सिंहदेवगणि ने 'वाग्भटालंकार' पर १३३१ श्लोक-परिमाण वृत्ति की रचना की है ।'
२. वाग्भटालङ्कार - वृत्ति :
तपागच्छीय आचार्य विशालराज के शिष्य सोमोदयगणि ने 'वाग्भटालंकार' पर १९६४ श्लोक- परिमाण वृत्ति बनाई है । "
१. यह वृत्ति निर्णयसागर प्रेस, बंबई से छपी है ।
२.
इसकी हस्तलिखित प्रति अहमदाबाद के लालभाई दलपतभाई भारतीय संस्कृति विद्यामंदिर में है ।
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