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जैन साहित्य का बृहद् इतिहास कविशिक्षा : __आचार्य बप्पभट्टिसूरि (वि० सं० ८०० से ८९५) ने 'कविशिक्षा' या ऐसे ही नाम का कोई साहित्यग्रन्थ रचा हो, ऐसा विनयचन्द्रसूरिरचित 'काव्यशिक्षा' के उल्लेखों से ज्ञात होता है। आचार्य विनयचन्द्रसूरि ने 'काव्यशिक्षा के प्रथम पद्य में 'बप्पभद्विगुरोर्गिरम्' (पृष्ठ १) और 'लक्षणैर्जायते काव्यं बप्पभट्टि प्रसादतः' (पृष्ठ १०९) इस प्रकार उल्लेख किये हैं । बप्पभट्टसूरि का 'कविशिक्षा' या इसी प्रकार के नाम का अन्य कोई ग्रन्थ आज तक उपलब्ध नहीं हुआ है।
आचार्य बप्पभट्टिसूरि ने अन्य ग्रन्थों की भी रचना की थी। इनके 'तारागण' नामक काव्य का नाम लिया जाता है परन्तु वह अभी तक प्राप्त नहीं हुआ है। शृङ्गारमंजरी:
मुनि अजितसेन ने 'शृङ्गारमञ्जरी' नाम की कृति की रचना की है। इसमें ३ अध्याय हैं और कुल मिलाकर १२८ पद्य हैं। यह अलंकारशास्त्र सम्बन्धी सामान्य ग्रन्थ है । इसमें दोष, गुण और अर्थालंकारों का वर्णन है।
कर्ता के विषय में कुछ भी जानकारी नहीं मिलती। सिर्फ रचना से ज्ञात होता है कि यह ग्रन्थ विक्रम की १० वीं शताब्दी में लिखा गया होगा।
इसकी हस्तलिखित प्रति सूरत के एक भण्डार में है, ऐसा 'जिनरत्नकोश' पृ० ३८६ में उल्लेख है। कृष्णमाचारियर ने भी इसका उल्लेख किया है।' काव्यानुशासन:
'सिद्धहेमचन्द्रशब्दानुशासन' वगैरह अनेक ग्रन्थों के निर्माण से सुविख्यात, गुजरेश्वर सिद्धराज जयसिंह से सम्मानित और परमाहत कुमारपाल नरेश के धर्माचार्य कलिकालसर्वज्ञ आचार्य हेमचन्द्रसूरि ने 'काव्यानुशासन' नामक अलंकारग्रन्थ की वि० सं० ११९६ के आसपास में रचना की है।
१. देखिए-हिस्ट्री ऑफ क्लासिकल संस्कृत लिटरेचर, पृ० ७५२. २. यह ग्रन्थ निर्णयसागर प्रेस, बम्बई की 'काव्यमाला' ग्रन्थावली में स्त्रोपज्ञ
दोनों वृत्तियों के साथ प्रकाशित हुआ था। फिर महावीर जैन विद्यालय, बम्बई से सन् १९३८ में प्रकाशित हुभा। इसकी दूसरी भावृत्ति वहीं से सन् १९६५ में प्रकाशित हुई है।
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