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________________ ( १० > उन्होंने कोई उदाहरण देने को कहा । हमने अनायास ही पुस्तिका खोली । जैसा उसमें लिखा था, पढ़ कर सुनाया । उसमें एक पाठ था : संकोचनरहस्यो नाम -- यंत्रांगोपसंहाराधिकोक्तरीत्या अंतरिक्षे अति वेगात् पलायमानानां विस्तृतखेटयानानामपाय सम्भवे विमानस्थ सप्तमकीलीचालनद्वारा तदंगोपसंहार क्रिया रहस्यम् । अर्थात् यदि आकाश में आपका विमान अनेकों अतिवेग से भागने वाले शत्रु विमानों से घिर जाय और आप के विमान के निकल भागने या नाश से बचने का कोई उपाय न दिखाई दे तो आप अपने विमान में लगी सात नम्बर की कीली ( Lever ) को चलाइए। इससे आप के विमान का एक-एक अंग सिकुड़ कर छोटा हो जायेगा और आप के विमान की गति अति तेज हो जायेगी और आप निकल जायेंगे। इस पाठ को सुन कर श्री हॉले उत्तेजित और चकित होकर कुर्सी से उठ खड़े हुए और बोले - " वर्गीज, क्या तुमने कभी चील को नीचे झपटते नहीं देखा है, उस समय कैसे वह अपने शरीर तथा पैरों को सिकुड़ कर अति तीव्र गति प्राप्त करती है, यही सिद्धान्त इस यन्त्र द्वारा प्रकट किया है । इस प्रकार के अनेकों स्थल जत्र उन्हें सुनाये तो वह इस ग्रंथिका के साथ मानो चिपट ही गये । उन्होंने हमारे साथ इस ग्रंथ के केवल एक सूत्र ( दूसरे ) ही पर लगभग एक महीना काम किया । विदा होने के समय हमने संदेह प्रकट करते हुए उनसे पूछा - " क्या इस परिश्रम को व्यर्थ भी समझा जा सकता है ?" उन्होंने बड़े गंभीर भाव से उत्तर दिया- "मेरे विचार में व्यक्ति के जीवन में ऐसी घटना शायद दस लाख में एक बार आती है ( It is a chance one out of a million )” । पाठक इस ग्रंथ की उपयोगिता का एक विदेशी विद्वान् के परिश्रम और शब्दों से अनुमान लगा सकते हैं। इसमें से उसे जो नये-नये भाव लेने थे, गया। हम लोगों के पास तो वे सूखे पन्ने ही पड़े हैं । विमानप्रकरणम् : ग्रन्थ परिचय - यह विमानप्रकरण भरद्वाज ऋषि के महाग्रन्थ ' यन्त्रसर्वस्व ' का एक भाग है । 'यन्त्रसर्वस्व' महाग्रन्थ उपलब्ध नहीं है । इसके 'विमानप्रकरण' पर यति बोधानन्द ने व्याख्या वृत्ति के रूप में लिखी, उसका कुछ भाग हस्तलिखित प्राप्त पुस्तिका में बोधानन्द यूँ लिखते हैं "पूर्वाचार्यकृतान् शाखानवलोक्य यथामति । सर्वलोकोपकराय सर्वार्थविनाशकम् ॥ Jain Education International -: For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002098
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 5
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhujbal Shastri, Minakshi Sundaram Pillai
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1993
Total Pages336
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Literature, & Grammar
File Size12 MB
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