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जैन साहित्य का बृहद् इतिहास १. चेइयपरिवाडी ( चैत्यपरिपाटी ) :
इसकी रचना जिनप्रभसूरि ने अपभ्रंश में की है। २. चैत्यपरिपाटो : ___ यह सोमजय के शिष्य सुमतिसुन्दरसूरि की रचना है । तीर्थमालाप्रकरण : ___ अंचलगच्छ के महेन्द्रप्रभसूरि अथवा महेन्द्रसूरि ने यह प्रकरण अपने स्वर्गवास (वि० सं० १४४४ ) से पहले लिखा है । इसमें उन्होंने विविध तीर्थों के विषय में जानकारी प्रस्तुत की है; जैसे कि, आनन्दपुर, तारंगा ( तारणगिरि ), बंभनपाड, भडोंच, मथुरा ( सुपार्श्वनाथ का स्तूप ), भिन्नमाल, नाणाग्राम, शत्रुजय, स्तम्भनपुर और सत्यपुर ( साचोर ) । १. तित्थमालाथवण ( तीर्थमालास्तवन ) : ___ इसकी रचना धर्म घोषसूरि के शिष्य महेन्द्रसूरि ने जैन महाराष्ट्री में १११ पद्यों में की है। उसमें इसका प्रतिमास्तुति' नाम से उल्लेख किया है। इसमें जैन तीर्थों के नाम आदि आते हैं। जिनरत्नकोश ( वि० १, पृ० १६० ) में इसके कर्ता का नाम मुनिचन्द्रसूरि', टीकाकार का नाम महेन्द्रसिंहसूरि और पद्य-संख्या ११२ दी है, परन्तु यह भ्रान्त प्रतीत होता है। २. तीर्थमालास्तवन :
इस नाम की एक कृति की रचना धर्मघोषसूरि ने भी की है।
१. यह कृति भीमसी माणेक ने 'विधिपक्षप्रतिक्रमण' नामक ग्रन्थ में प्रकाशित
की है। २. देखिए-जैन साहित्यनो संक्षिप्त इतिहास, पृ० ३९६ । ३. इसके स्थान पर चन्द्रसूरि और मुनिसुन्दसूरि के नाम भी जिनरत्नकोश
(वि० १, पृ० १६१ ) में आते हैं।
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