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________________ कवायप्राभृत जघन्यकाल मरणादि व्याघात से रहित अवस्था में होता है। चक्षुरिन्द्रियसम्बन्धी मतिज्ञानोपयोग, श्रुतज्ञानोपयोग, पृथक्त्ववितर्कवीचारशुक्लध्यान, मानकषाय, अवायमतिज्ञान, उपशान्तकषाय तथा उपशामक का उत्कृष्टकाल अपने से पहले के स्थान के काल से दुगुना होता है। शेष स्थानों का उत्कृष्टकाल अपने से पहले के स्थान के काल से विशेष अधिक होता है। .. प्रेयोद्वेषविभक्ति में निम्नोक्त बातों का विचार करने को कहा गया है : (३) पेज्जं वा दोसो वा कम्मि कसायम्मि कस्स व णयस्स । दुट्टो व कम्मि दव्वे पियायदे को कहिं वा वि ॥ २१ ॥ अर्थात् किस कषाय में किस नय की अपेक्षा से प्रेय या द्वेष का व्यवहार होता है ? कौन-सा नय किस द्रव्य में द्वेष या प्रेय को प्राप्त होता है ? कि कषाय मोहनीयकर्म से उत्पन्न होता है इसलिए ग्रन्थकार ने आगे के दो अर्थाधिकारों के विषय में यह बताया है कि इनमें मोहनीयकर्म की प्रकृतिविभक्ति, स्थितिविभक्ति, अनुभागविभक्ति, उत्कृष्ट-अनुत्कृष्ट प्रदेशविभक्ति, क्षीणाक्षीण और स्थित्यन्तिक का कथन करना चाहिए। बन्धक अर्थाधिकार में आचार्य ने निम्नलिखित प्रश्नों का समाधान कर लेने को कहा है : यह जीव कितनी प्रकृतियों को बांधता है, कितनी स्थिति को बांधता है, कितने अनुभाग को बांधता है तथा कितने जघन्य एवं उत्कृष्ट परिमाणयुक्त प्रदेशों को बांधता है ? इसी प्रकार कितनी प्रकृतियों का संक्रमण करता है, कितनी स्थिति का संक्रमण करता है, कितने अनुभाग का संक्रमण करता है तथा कितने गुणहीन एवं गुणविशिष्ट जघन्य-उत्कृष्ट प्रदेशों का संक्रमण करता है ? संक्रम की उपक्रम-विधि पांच प्रकार की है, निक्षेप चार प्रकार का है, नय-विधि प्रकृत में विवक्षित है तथा प्रकृत में निर्गम आठ प्रकार का है। संक्रम के दो भेद हैं : प्रकृतिसंक्रम और प्रकृतिस्थानसंक्रम। इसी प्रकार असंक्रम के भी दो भेद है । संक्रम की प्रतिग्रहविधि दो प्रकार की है : प्रकृतिप्रतिग्रह और प्रकृतिस्थानप्रतिग्रह । इसी प्रकार अप्रतिग्रहविधि भी दो प्रकार की है। इस तरह निर्गम के आठ भेद होते हैं। २. गा० २२. ३. गा० २३. १. गा० १५-२०. ४. गा० २४-२६. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002097
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Mehta, Hiralal R Kapadia
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1991
Total Pages406
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Canon, Agam, Karma, Achar, & Philosophy
File Size14 MB
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