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________________ ६५ आवश्यकनियुक्ति है । यही कारण है कि यह नियुक्ति सामग्री, शैली आदि सभी दृष्टियों से अधिक महत्त्वपूर्ण है । इसमें अनेक महत्त्वपूर्ण विषयों का विस्तृत एवं व्यवस्थित व्याख्यान किया गया है । आगे की नियुक्तियों में पुनः उन विषयों के आने पर संक्षिप्त व्याख्या करके आवश्यकनियुक्ति की ओर संकेत कर दिया गया है । इस दृष्टि से दूसरी नियुक्तियों के विषयों को ठीक तरह से समझने के लिए इस नियुक्ति का अध्ययन आवश्यक है । जब तक आवश्यकनियुक्ति का अध्ययन न किया जाय, अन्य नियुक्तियों का अर्थ समझने में कठिनाइयाँ होती हैं। आवश्यकसूत्र का जैन आगम-ग्रंथों में महत्त्वपूर्ण स्थान है । इसमें छः अध्ययन हैं । प्रथम अध्ययन का नाम सामायिक है । शेष पाँच अध्ययनों के नाम चतुर्विशतिस्तव, वन्दना, प्रतिक्रमण, कायोत्सर्ग और प्रत्याख्यान हैं। आवश्यकनियुक्ति इसी सूत्र की आचार्य भद्रबाहुकृत प्राकृत पद्यात्मक व्याख्या है। इसी व्याख्या के प्रथम अंश अर्थात् सामायिक-अध्ययन से सम्बन्धित नियुक्ति की विस्तृत व्याख्या आचार्य जिनभद्र ने की है । जो विशेषावश्यकभाष्य के नाम से प्रसिद्ध है। इस भाष्य की भी अनेक व्याख्याएं हुई । इन व्याख्याओं में स्वयं जिनभद्रकृत व्याख्या भी है । मलधारी हेमचन्द्रकृत व्याख्या विशेष प्रसिद्ध है। उपोद्घात : __ आवश्यक नियुक्ति के प्रारम्भ में उपोद्घात है । इसे ग्रन्थ की भूमिका के रूप में समझना चाहिए । भूमिका के रूप में होते हुए भी इसमें ८८० गाथाएँ हैं। ज्ञानाधिकार : उपोद्घातनियुक्ति की प्रथम गाथा में पाँच प्रकार के ज्ञान बताए गए हैं : आभिनिबोधिक, श्रुत, अवधि, मनःपर्यय और केवल । ये पांचों प्रकार के ज्ञान मंगलरूप हैं अतः इस गाथा से मंगलगाथा का प्रयोजन भी सिद्ध हो जाता है, ऐसा बाद के टीकाकारों का मन्तव्य है । आभिनिबोधिक ज्ञान के संक्षेप में चार भेद किए गए हैं : अवग्रह, ईहा, अवाय और धारणा । इनमें से प्रत्येक का कालप्रमाण क्या है, यह बताते हुए आगे कहा गया है : अवग्रह की मर्यादा एक समय है, ईहा और अवाय अन्तमुहूतं तक रहते हैं, धारणा की कालमर्यादा संख्येय समय, असंख्येय समय और अन्तर्मुहूर्त है। अविच्युति और स्मृतिरूप धारणा अन्तर्मुहूर्त तक रहती है, वासना व्यक्तिविशेष की आयु एवं तदावरणकर्म के क्षयोपशम की विशेषता के कारण संख्येय अथवा असंख्येय समय तक बनी रहती है। १. गा० १-४. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002096
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Mehta
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1989
Total Pages520
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Canon, & Agam
File Size19 MB
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