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________________ ४८ जैन साहित्य का बृहद् इतिहास श्रीचन्द्रसूरिकृत टीकाएं : ___ श्रीचन्द्रसूरि शीलभद्रसूरि के शिष्य हैं। इन्होंने निम्नांकित ग्रन्थों पर टीकाएँ लिखी है : निशीथ (बीसवाँ उद्देशक ), श्रमणोपासक-प्रतिक्रमण ( आवश्यक ), नन्दी, जीतकल्प, निरयावलिकादि अन्तिम पाँच उपांग । निशीथचूणि-दुर्गपदव्याख्या : इसमें निशीथचूणि के बीसवें उद्देशक के कठिन अंशों की सुबोध व्याख्या की गई है। व्याख्या का अधिक अंश विविध प्रकार के मासों के भंग, दिनों की गिनती आदि से सम्बन्धित होने के कारण कुछ नीरस है। अन्त में व्याख्याकार ने अपना परिचय देते हुए अपने को शीलभद्रसूरि का शिष्य बताया है। प्रस्तुत व्याख्या वि.सं. ११७४ की माघ शुक्ला द्वादशी रविवार के दिन समाप्त हुई । निरयावलिकावृत्ति : यह वृत्ति अन्तिम पाँच उपांगरूप निरयावलिका सूत्र पर है । वृत्ति संक्षिप्त एवं शब्दार्थ-प्रधान है। इसका ग्रन्थमान ६०० श्लोक-प्रमाण है। जीतकल्पबृहच्चूर्णि-विषमपदव्याख्या : प्रस्तुत व्याख्या सिद्धसेन सूरिकृत जीतकल्प-बृहच्चूणि के विषम पदों के व्याख्यान के रूप में है। इसमें यत्र-तत्र प्राकृत गाथाएँ उद्धृत की गई हैं। अन्त में व्याख्याकार ने अपना नामोल्लेख करते हुए बताया है कि प्रस्तुत व्याख्या वि. सं० १२२७ के महावीर-जन्मकल्याण के दिन पूर्ण हुई। व्याख्या का ग्रन्थमान ११२० श्लोक-प्रमाण है। उपयुक्त टीकाकारों के अतिरिक्त और भी ऐसे अनेक आचार्य हैं जिन्होंने आगमों पर छोटी या बड़ी टीकाएं लिखी हैं। इस प्रकार की कुछ प्रकाशित टीकाओं का परिचय आगे दिया जाता है। आचार्य क्षेमकीर्तिकृत बृहत्कल्पवृत्ति : ___यह वृत्ति आचार्य मलयगिरिकृत अपूर्ण वृत्ति की पूर्ति के रूप में है। शैली आदि की दृष्टि से प्रस्तुत वृत्ति मलयगिरिकृत वृत्ति की ही कोटि की है । आचार्य क्षेमकीर्ति के गुरु का नाम विजयचन्द्रसूरि है । वृत्ति का समाप्तिकाल जेष्ठ शुक्ला दशमी वि. सं. १३३२ एवं ग्रंथमान ४२६०० श्लोक-प्रमाण है । माणिक्यशेखरसूरिकृत आवश्यकनियुक्ति-दीपिका : / यह टीका आवश्यकनियुक्ति का शब्दार्थ एवं भावार्थ समझने के लिए बहुत उपयोगी है । टीका के अन्त में बताया गया है कि दीपिकाकार माणिक्यशेखर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002096
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Mehta
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1989
Total Pages520
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Canon, & Agam
File Size19 MB
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