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________________ ४२ जैन साहित्य का बृहद् इतिहास किया है कि इसी सूत्र की प्राचीन टीका एवं चूणि तथा जीवाभिगम आदि की वृत्तियोंकी सहायता से प्रस्तुत विवरण प्रारम्भ किया जाता है । यह प्राचीन टीका संभवतः आचार्य शीलांककृत व्याख्याप्रज्ञप्ति-वृत्ति है जो इस समय अनुपलब्ध है। प्रस्तुत वृत्ति के अन्त में अभयदेवसूरि ने अपनी गुरु-परम्परा का संक्षिप्त परिचय देते हुए बताया है कि १८६१६ श्लोकप्रमाण प्रस्तुत टीका पाटन ( अणहिल-- पाटन ) में वि० सं० ११२८ में समाप्त हुई। ज्ञाताधर्मकथाविवरण : प्रस्तुत टीका सूत्रस्पर्शी एवं शब्दार्थप्रधान है। प्रत्येक अध्ययन की व्याख्या के अन्त में उससे फलित होनेवाला विशेष अर्थ स्पष्ट किया गया है एवं उसकी पुष्टि के लिए तदर्थगभित गाथाएँ भी दी गई हैं। विवरण के अन्त में आचार्य ने अपना परिचय दिया है तथा प्रस्तुत टीका के संशोधक के रूप में निर्वृतककुलीन द्रोणाचार्य का नामोल्लेख किया है। विवरण का ग्रन्थमान ३८०० श्लोक प्रमाण है। ग्रन्य-समाप्ति की तिथि वि० सं० ११२० की विजयादशमी एवं लेखनसमाप्ति का स्थान पाटन है । उपासकदशांगवृत्ति : यह वृत्ति भी सूत्रस्पर्शी एवं शब्दार्थ-प्रधान है। कहीं-कहीं व्याख्यान्तर का भी निर्देश है। अनेक जगह ज्ञाताधर्मकथा को व्याख्या से अर्थ समझ लेने की सूचना दी गई है। वृत्ति का ग्रन्थमान ८१२ श्लोकप्रमाण है। वृत्ति-लेखन के स्थान, समय आदि का कोई उल्लेख नहीं है । अन्तकृद्दशावृत्ति : प्रस्तुत वृत्ति भी सूत्रस्पर्शी एवं शब्दार्थ-प्रधान है । इसमें भी अव्याख्यात पदों का अर्थ समझने के लिए अनेक जगह ज्ञाताधर्मकथा की व्याख्या का उल्लेख किया गया है । वृत्ति का ग्रन्यमान ८९९ श्लोक-प्रमाण है । अनुत्तरापपातिकदशावृत्तिः यह वृत्ति भी सूत्रस्पर्शी एवं शब्दार्थग्राही है । वृत्ति का ग्रन्थमान १९२ श्लोकप्रमाण है। प्रश्नव्याकरणवृत्ति : ___ यह वृत्ति भी सूत्रस्पर्शी एवं शब्दार्थ-प्रधान है। इसका ग्रन्थमान ४६०० श्लोक-प्रमाण है । इसे संशोधित करने का श्रेय भी द्रोणाचार्य को ही है । वृत्तिकार ने प्रश्नव्याकरणसूत्र को अति दुरूह ग्रन्थ बताया है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002096
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Mehta
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1989
Total Pages520
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Canon, & Agam
File Size19 MB
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