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________________ अन्य टीकाएँ ४२१ आदि ने, उपासकदशांग पर हर्षवल्लभ उपाध्याय (सं० १६९३), विवेकहंस उपाध्याय आदि ने प्रश्नव्याकरण पर ज्ञानविमलसूरि, पार्श्वचन्द्र, अजितदेवसूरि आदि ने, औपपातिक पर राजचन्द्र और पार्श्वचन्द्र ने राजप्रश्नीय पर राजचन्द्र, रत्नप्रभसूरि, समरचन्द्रसूरि आदि ने जीवाभिगम पर पद्मसागर (सं० १७००) आदि ने प्रज्ञापना पर जीवविजय (सं० १७८४) आदि ने, जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति पर पुण्यसागर (सं० १६४५) आदि ने, चतुःशरण पर विनयराजगणि, पार्श्वचन्द्र विजयसेनसूरि आदि ने आतुरप्रत्याख्यान पर हेमचन्द्रगणि आदि ने, संस्तारक पर समरचन्द्र ( सं० १६०३) आदि ने, तन्दुलवैचारिक पर पार्श्वचन्द्र आदि ने बृहत्कल्प पर सौभाग्यसागर आदि ने उत्तराध्ययन पर कीर्तिवल्लभ (सं० १५५२) कमलसंयम उपाध्याय (सं० १५५४), तपोरत्न वाचक (सं० १५५०), गुणशेखर, लक्ष्मीवल्लभ, भावविजय (सं० १६८९), हर्षनन्दनगणि, धर्ममन्दिर उपाध्याय (सं० १७५० ), उदयसागर (सं० १५४६), मुनिचन्द्रसूरि, ज्ञानशील गणि, अजितचन्द्रसूरि, राजशील, उदयविजय, मेघराज वाचक नगर्षिगणि, अजितदेवसूरि, माणिक्यशेखर, ज्ञानसागर आदि ने, दशवैकालिक पर सुमतिसूरि, समयसुन्दर (सं० १६८१), शान्तिदेवसूरि, सोम विमलसूरि, रामचन्द्र (सं० १६६७), पार्श्वचन्द्र, मेरुसुन्दर, माणिक्यशेखर, ज्ञानसागर आदि ने, पिण्डनियुक्ति पर क्षमारत्न, माणिक्यशेखर आदि ने, नन्दी पर जयदयाल, पार्श्वचन्द्र आदि ने ओनियुक्ति पर ज्ञानसागर (सं० १४३९ ) और माणिक्यशेखर ने तथा दशाश्रुतस्कन्ध पर ब्रह्ममुनि [ ब्रह्मर्षि ] आदि ने टीकाएँ लिखी हैं । इन टीकाओं के अतिरिक्त कुछ टीकाएँ अज्ञात आचार्यों द्वारा भी लिखी गई हैं ।" कुछ आचार्यों के नाम, समय आदि के विषय में भी अभी तक पूर्ण निश्चय नहीं हो पाया है । ऐसी स्थिति में किसी के नाम का एक से अधिक रूपों में प्रयोग हो जाना असंभव नहीं है । इसी प्रकार अनेक टीकाओं नहीं हो पाया है : विशेषकर अनुपलब्ध टीकाओं की तो अनेक प्रकार की शंकाएँ स्वाभाविक हैं। आगे परिचय दिया जाता है । के विषय में भी पूरा निश्चय यथार्थ स्थिति के विषय में कुछ प्रकाशित टीकाओं का बृहत्कल्पवृत्ति : आचार्य मलयगिरिकृत बृहत्कल्प को अपूर्ण वृत्ति को पूरी करने का श्रेय आचार्य क्षेमकीर्ति को है। पीठिका भाष्य की ६०६ गाथाओं से आगे के सम्पूर्ण भाष्य ( लघुभाष्य ) की वृत्ति इन्हीं आचार्य की कृति है । शैली आदि की दृष्टि १. देखिए — जिनरत्नकोश : प्रथम भाग. २. जैन आत्मानन्द सभा, भावनगर, सन् १९३३–१९४२. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002096
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Mehta
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1989
Total Pages520
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Canon, & Agam
File Size19 MB
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