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________________ मलधारी हेमचन्द्रकृत टीकाएँ ४११ नुष्ठानरतपरमनैष्ठिकपंडित-श्वेताम्बराचार्य - भट्टारकश्रीहेमचन्द्राचार्येण पुस्तिका लि० श्री०। जहाँ तक मलधारी हेमचन्द्र की ग्रंथरचना का प्रश्न है, हमने मुनिसुव्रतचरित को प्रशस्ति के आधार पर उपदेशमाला आदि नौ ग्रंथों का उल्लेख किया है । विशेषावश्यकभाष्य को वृत्ति के अन्त में आचार्य ने स्वयं ग्रन्थरचना का क्रम दिया है और ग्रन्थसंख्या दस दो है । मुनिसुव्रतचरित में उल्लिखित नौ ग्रंथों में एक ग्रन्थ और जोड़ा गया है और वह है नन्दिटिप्पण । इस ग्रन्थ को किसी भी प्रति का कहीं उल्लेख नहीं मिलता। ऐसा होते हुए भी यदि विशेषावश्यकभाष्य की वृत्ति में उल्लिखित ग्रंथसंख्या एवं रचनाक्रम ठीक माना जाए तो मलधारी हेमचन्द्र की ग्रंथरचना का क्रम इस प्रकार होना चाहिए : १. आवश्यकटिप्पण, २. शतकविवरण, ३. अनुयोगद्वारवृत्ति, ४. उपदेशमालासूत्र, ५. उपदेशमालावृत्ति, ६. जीवसमासविवरण, ७. भवभावनासूत्र, ८. भवभावनाविवरण, ९. नन्दिटिप्पण, १०. विशेषावश्यकभाष्य-बृहवृत्ति । यह क्रम श्रीचन्द्रसूरिकृत मुनिसुव्रतचरित में उल्लिखित पूर्वोक्त क्रम से कुछ भिन्न ही है। इन ग्रन्थों का परिमाण लगभग ८०००० श्लोक-प्रमाण है। ये सब ग्रंथ विषय की दृष्टि से प्रायः स्वतंत्र हैं अतः उनमें पुनरावृत्ति के लिए विशेष गुजाइश नहीं रही। आवश्यकत्तिप्रदेश व्याख्या : ___ यह व्याख्या हरिभद्रकृत आवश्यकवृत्ति पर है। इसे हारिभद्रीयावश्यकवृत्ति टिप्पणक भी कहते हैं। इस पर प्रस्तुत व्याख्याकार आचार्य हेमचन्द्र के ही शिष्य श्रीचंद्रसूरि ने एक और टिप्पण लिखा है जिसे प्रदेशव्याख्याटिप्पण कहते हैं। प्रारम्भ में व्याख्याकार आदिजिनेश्वर (ऋषभदेव ) को नमस्कार करते हैं । तदनन्तर वर्धमानपर्यन्त शेष समस्त तीर्थकरों को नमस्कार करके संक्षेप में टिप्पण लिखने की प्रतिज्ञा करते हैं : जगत्त्रयमतिक्रम्य, स्थिता यस्य पदत्रयी। विष्णोरिव तमानम्य श्रीमदाद्यजिनेश्वरम् ॥१।। शेषानपि नमस्कृत्य, जिनानजितपूर्वकान् । श्रीमतो वर्द्धमानान्तान्, मुक्तिशर्मविधायिनः ॥२॥ समुपासितगुरुजनतः समधिगतं किञ्चिदात्मसंस्मृतये। सङ्क्षपादावश्यकविषयं टिप्पनमहं वच्मि ॥३॥ १. श्रीचंद्रसूरिविहित टिप्पणसहित-देवचंद्र लालभाई जैन पुस्तकोद्धार, बंबई, सन् १९२०. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002096
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Mehta
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1989
Total Pages520
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Canon, & Agam
File Size19 MB
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