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________________ प्रथम संस्करण का प्रकाशकीय जैन साहित्य के बृहद् इतिहास का यह तोसरा भाग है । जैनागमों का व्याख्यात्मक साहित्य इसका विषय है । डा० मोहनलाल मेहता, अध्यक्ष, पार्श्वनाथ विद्याश्रम शोध संस्थान, इसके लेखक हैं । श्री दलसुखभाई मालवणिया और वे इसके सम्पादक हैं । श्री दलसुखभाई इस समय टोरोंटो यूनिवर्सिटी, केनेडा में भारतीय दर्शन के अध्यापन के लिए वार्षिक १५००० डालर वेतन पर नियुक्त होकर गये हुए हैं। इससे पहले वे कई वर्षों से लालभाई दलपतभाई भारतीय संस्कृति विद्यामन्दिर, अहमदाबाद, के अध्यक्ष थे । पंडित श्री सुखलालजी के बाद वे बनारस हिन्दू यूनिवर्सिटी में जैन दर्शन वर्षों तक पढ़ाते रहे । जब से पार्श्वनाथ विद्याश्रम का आरम्भ हुआ, श्री दलसुखभाई इस शोध संस्थान के सखा और सहायक रहे हैं । उनका स्नेह और सहानुभूति आजतक हमें प्राप्त है । केनेडा जाने से पूर्व वे अगले भाग के सम्पादन- कार्य को भी पूरा कर गये हैं । उनकी विद्वत्ता और योग्यता प्रामाणिक है । डा० मोहनलाल मेहता हिन्दू यूनिवर्सिटी में सम्मान्य प्राध्यापक हैं । वे एम० ए० की कक्षाओं में जैन दर्शन का अध्यापन तथा पी-एच० डी० के छात्रों को शोध-निर्देशन भी करते हैं । उन्होंने जैन आचार ग्रंथ भी लिखा है । इस समय जैन संस्कृति पर ग्रंथ लिख रहे हैं । पार्श्वनाथ विद्याश्रम की स्थापना जुलाई, सन् १९३७ में हुई थी । तीर्थंकर पार्श्वनाथ के जीवन का वाराणसी से घनिष्ठ सम्बन्ध रहा है । इसी प्रेरणा से वर्तमान शोध संस्थान के नामकरण के समय उनका नाम इस ज्ञान प्रसारक संस्था के साथ जोड़ना अभीष्ट समझा गया है । पार्श्वनाथ विद्याश्रम भारतीय विद्या के अन्तर्गत प्राकृत और जैन विषयों में शोध कार्य करने की प्रेरणा लेकर उपस्थित हुआ है । उस शोधफल को प्रकाशित करना भी इसकी प्रवृत्ति है । प्रति वर्ष चारपाँच रिसर्च स्कॉलर यहाँ पर शोधकार्यं करते हैं और अपने-अपने विषय पर थीसिस हिन्दू यूनिवर्सिटी में परीक्षणार्थं पेश करते हैं । अबतक ७ रिसर्च स्कॉलर पो-एच० डी० हो चुके हैं । प्रत्येक रिसर्च स्कॉलर को दो वर्ष तक मासिक २००) रुपये छात्रवृत्ति दी जाती है । स्वतन्त्र शोध और प्रकाशन - कार्य भी बराबर होता है । इस इतिहास की योजना उस कार्य का एक रूप है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002096
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Mehta
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1989
Total Pages520
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Canon, & Agam
File Size19 MB
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