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________________ ३९० जैन साहित्य का बृहद् इतिहास श्लोक में महावीर की जय बोली गई है; द्वितीय में जिन प्रवचन को नमस्कार किया गया है, तृतीय में गुरु को प्रणाम किया गया है, चतुर्थ में प्रज्ञापना सूत्र की टीका करने की प्रतिज्ञा की गई है : जयति नमदमरमुकुट प्रतिबिम्ब च्छद्मविहितबहुरूपः । उद्धतुमिव समस्तं विश्वं भवपङ्कतो वोरः ।। १ ।। जिनवचनामृतजलधि वन्दे यद्विन्दुमात्रमादाय । अभवन्नूनं सत्त्वा जन्म-जरा-व्याधिपरिहीणाः ॥ २ ॥ प्रणमत गुरुपदपङ्कजमध री कृतकामधेनुकल्पलतम् । यदुपास्तिवशान्निरुप ममश्नुवते ब्रह्म तनुभाजः ॥ ३ ॥ जडमतिरपि गुरुचरणोपास्तिसमुद्भूतविपुलमतिविभवः । समयानुसारतोऽहं विदधे प्रज्ञापनाविवृतिम् ॥ ४॥ 'प्रज्ञापना' का शब्दार्थ करते हुए वृत्तिकार कहते हैं : प्रकर्षेण ज्ञाप्यन्ते अनयेति प्रज्ञापना अर्थात् जिसके द्वारा जीवाजीवादि पदार्थों का ज्ञान किया जाय वह प्रज्ञापना है। यह प्रज्ञापना सूत्र समवाय नामक चतुर्थं अंग का उपांग है क्योंकि यह समवायांग में निरूपित अर्थ का प्रतिपादन करता है । यदि कोई यह कहे कि समवायांगनिरूपित अर्थ का इसमें प्रतिपादन करना निरर्थक है तो ठीक नहीं । इसमें समवायांगप्रतिपादित अर्थ का विस्तारपूर्वक प्रतिपादन किया गया है । इससे मंदमति शिष्य का विशेष उपकार होता है । अतः इसकी रचना सार्थक है । इसके बाद मंगल की सार्थकता आदि पर प्रकाश डालते हुए आचार्य ने सूत्र के पदों का व्याख्यान किया है । व्याख्यान आवश्यकतानुसार कहीं संक्षिप्त है तो कहीं विस्तृत । अन्त में वृत्तिकार ने जिनवचन को नमस्कार करते हुए अपने पूर्ववर्ती टीकाकार आचार्य हरिभद्र को यह कहते हुए नमस्कार किया है कि टीकाकार हरिभद्रसूरि की जय हो जिन्होंने प्रज्ञापना सूत्र के विषम पदों का व्याख्यान किया है और जिनके विवरण से मैं भी एक छोटा-सा टीकाकार बना हूँ । तदनन्तर प्रज्ञापनावृत्ति से प्राप्त पुण्य को जिनवाणी के सद्बोध के लिए प्रदान करते हुए वृत्तिकार कहते हैं कि प्रज्ञापनासूत्र की टीका लिखकर मलयगिरि ने जो निर्दोष पुण्योपार्जन किया है उससे संसार के समस्त प्रागी जिनवचन का सद्बोध प्राप्त करें । प्रस्तुत वृत्ति का ग्रंथमान १६००० श्लोकप्रमाण है । (इ) केवल गुजराती अनुवाद - अनु. पं. भगवानदास हर्षचन्द्र, जैन सोसायटी, अहमदाबाद, वि. सं. १९१. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002096
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Mehta
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1989
Total Pages520
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Canon, & Agam
File Size19 MB
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