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________________ अभयदेवविहित वृत्तियाँ ३६९ ञ्चित् मूर्त भी है । इस प्रकार की दार्शनिक चर्चा प्रस्तुत वृत्ति में अनेक स्थानों पर देखने को मिलती है । दार्शनिक दृष्टि के साथ ही साथ वृत्तिकार ने निक्षेपपद्धति का भी उपयोग किया है जिसमें नियुक्तियों और भाष्यों की शैली स्पष्टरूप से झलकती है ।' वृत्ति में यत्र-तत्र कुछ संक्षिप्त कथानक भी हैं जो मुख्यतः दृष्टान्तों के रूप में हैं । २ वृत्ति के अन्त में आचार्य ने अपना सानुप्रासिक परिचय देते हुए बताया है कि मैंने यह टीका यशोदेवगण की सहायता से पूर्ण की है : 'तत्समाप्तौ च समाप्तं स्थानाङ्गविवरणं, तथा च यदादावभिहितं स्थानाङ्गस्य महानिधानस्येवोन्मुद्रणमिवानुयोगः प्रारभ्यत इति तच्चन्द्रकुलीनप्रवचन प्रणीता प्रतिबद्धविहारहारिचरितश्रीवर्धमानाभिधानमुनिपतिपादोपसेविनः प्रमाणादिव्युत्पादनप्रवणप्रकरणप्रबन्धप्रणयिनः प्रबुद्धप्रतिबन्धप्रवक्तृप्रवीणाप्रतिहतप्रवचनार्थप्रधानवाक्प्रसरस्य सुविहितमुनिजनमुख्यस्य श्रीजनेश्वराचार्यस्य तदनुजस्य च व्याकरणादिशास्त्रकत्तु : श्री बुद्धिसागराचार्यस्य चरणकमलचञ्चरीककल्पेन श्रीमदभयदेवसूरिनाम्ना कया महावीरजिनराजसन्तानवर्तिना महाराजवंशजन्मनेव संविग्नमुनिवर्गश्रीमदजितसिंहाचार्यान्तेवासियशोदेव गणिनामधेयसाधोरुत्तरसाधकस्येव विद्याक्रियाप्रधानस्य साहाय्येन समर्थितम् ।" प्रस्तुत कार्य-विषयक अनेक प्रकार की कठिनाइयों को दृष्टि में रखते हुए विवरणकार ने अति विनम्र शब्दों में अपनी त्रुटियाँ स्वीकार की हैं। साथ ही अपनी कृतियों को आद्योपान्त पढ़कर आवश्यक संशोधन करने वाले द्रोणाचार्य का भी सादर नामोल्लेख किया है टीका के रचना काल का निर्देश करते हुए बताया है कि प्रस्तुत टीका विक्रम संवत् ११२० में लिखी गई : ४ मे ॥ १ ॥ सत्सम्प्रदायहीनत्वात्, सदृहस्य वियोगतः । सर्वस्वपरशास्त्राणामदृष्टेरस्मृतेश्च वाचनानामनेकत्वात्, पुस्तकानामशुद्धितः । सूत्राणामतिगाम्भीर्यान्मतभेदाच्च कुत्रचित् ॥ २ ॥ क्षूणानि सम्भवन्तीह केवलं सुविवेकिभिः । सिद्धान्तानुगतो योऽर्थः सोऽस्माद् ग्राह्यो न चेतरः ॥ ३ ॥ १. पृ० १२, २३, ९६, ९७, २४२, २. पृ० २४२, २६२, २६६, ३८९. ४. पृ० ४९९ ( २ ) - ५००. ३. पु० ४९९ ( २ ). २४ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002096
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Mehta
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1989
Total Pages520
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Canon, & Agam
File Size19 MB
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