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शीलांककृत विवरण
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प्रमाणों का उद्धरण, स्वपक्ष एवं परपक्ष की मान्यताओं का असंदिग्ध निरूपण आदि समस्त आवश्यक साधनों का उपयोग किया है । यत्र-तत्र पाठान्तर भी उद्धृत किये हैं। प्रस्तुत विवरण में एक बात विशेष ध्यान देने योग्य है और वह यह कि विवरणकार ने अपने विवरण में अनेकों श्लोक एवं गाथाएं उद्धृत की हैं किन्तु कहीं पर भी किसी श्लोक अथवा गाथा के रचयिता के नाम का निर्देश नहीं किया। इतना ही नहीं, तत्सम्बद्ध ग्रंथ के नाम का भी उल्लेख नहीं किया। 'तदुक्तम्', 'अन्यैरप्युक्तम्', 'तथा चोक्तम्', 'उक्तञ्च', 'तथाहि' इत्यादि शब्दों के साथ बिना किसी ग्रंथविशेष अथवा ग्रंथकार विशेष के नाम का निर्देश किये समस्त उद्धरणों का उपयोग किया है।
विवरण के अन्त में यह उल्लेख है ( १२८५० श्लोक-प्रमाण ) प्रस्तुत टीका शीलाचार्य ने वाहरिगणि की सहायता से पूरी की है : कृता चेयं शीलाचार्येण वाहरिगणिसहायेन। इसके बाद टीकाकार टीका से प्राप्त अपना पुण्य भव्य जन का अज्ञानांधकार दूर करने के लिए प्रदान करते हुए कहते हैं :
यदवाप्तमत्र पुण्यं टीकाकरणे मया समाधिभता । तेनापेततमस्को भव्यः कल्याणभाग भवतु।।
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