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जैन साहित्य का बृहद् इतिहास सूरि, राजशील, उदयविजय, सुमतिसूरि, समयसुन्दर, शान्तिदेवसूरि, सोमविमलसूरि, समारल, जयदयाल ।
इन आचार्यों में अनेक ऐसे हैं जिनके ठीक-ठीक व्यक्तित्व का निश्चय नहीं हो पाया है। संभवतः एक ही आचार्य के एक से अधिक नाम हों अथवा एक ही नाम के एक से अधिक आचार्य हों। इसके लिए विशेष शोध-खोज की आवश्यकता है। टीकाओं के लिए आचार्यों ने विभिन्न नामों का प्रयोग किया है । वे नाम हैं : टीका, वृत्ति, विवृति, विवरण, विवेचन, व्याख्या, वार्तिक, दीपिका, अवचूरि, अवचूर्णि, पंजिका, टिप्पन, टिप्पनक, पर्याय, स्तबक, पीठिका, अक्षरार्थ इत्यादि ।
उपयुक्त आचार्यों में से जिनके विषय में थोड़ी-बहुत प्रामाणिक सामग्री उपलब्ध है उनका विशेष परिचय देते हुए उनकी रचनाओं पर कुछ प्रकाश डाला जायेगा। इन रचनाओं में प्रकाशित टीकाओं की ही मुख्यता होगी।
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