SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 328
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ निशीथ-विशेषचूर्णि ३१९ प्रकार के स्थापनकल्प का स्वरूप बताया गया है । 'जे भिक्ख गाएज्ज........" (सू. १३४ ) का विवेचन करते हुए चूर्णिकार ने गीत, हसन, वाद्य, नृत्य, अभिनय आदि का स्वरूप बताया है तथा इनका आचरण करने वाले श्रमण के लिए चतुर्लघु प्रायश्चित्त का विधान किया है। इसी प्रकार शंख, श्रृंग, वेणु आदि के विषय में भी समझना चाहिए। अष्टदश उद्देश : इस उद्देश की चूणि में मुख्यरूप से नावविषयक दोषों का विवेचन किया गया है इन दोषों में नाव पर आरुढ होना, नाव खरीदना, नाव को स्थल से जल में और जल से स्थल पर पहुँचाना, भरी नाव का पानी खाली करना, खाली नाव में पानी भरना, नाव को खींचना, नाव को ढकेलना, नाव खेना, नाव को रस्सी आदि से बांधना, नाव में बैठे हुए किसी से आहारादि लेना इत्यादि का समावेश किया गया है। एकोनविंशतितम उद्देश : प्रस्तुत उददेश की व्याख्या में चूर्णिकार ने स्वाध्याय और अध्यापन सम्बन्धी नियमों पर विशेष प्रकाश डाला है स्वाध्याय का काल और अकाल, स्वाध्याय का विषय और अविषय, अस्वाध्यायिक का स्वाध्याय करने से लगने वाले दोष, अयोग्य व्यक्ति को पढ़ाने से होनेवाली हानि, दो तुल्य व्यक्तियों में से एक को पढ़ाने और दूसरे को नहीं पढ़ाने से लगने वाला दोष और उसका प्रायश्चित्त, पार्श्वस्थ आदि कुतीथियों को पढ़ाने से लगने वाले दोष, गृहस्थ आदि को पढ़ाने से लगने वाले दोष-इन सब बातों का आचार्य ने विस्तार से विचार किया है। विंशतितम उद्देश : यह अन्तिम उद्देश है। इसकी चूणि में मासिकादि परिहारस्थान तथा उनके प्रतिसेवन, आलोचन, प्रायश्चित्त आदि का विवेचन किया गया है। साथ ही भिक्षु, मास, स्थान, प्रतिसेवना और आलोचना का निक्षेप-पद्धति से व्याख्यान किया गया है।' अन्त में चूर्णिकार के परिचय के रूप में निम्न गाथाएँ हैं : ति चउ पण अट्ठमवग्गे, ति पणग ति तिग अक्खरा व ते तेसि । पढमततिएहि तिदुसरजुएहि णामं कयं जस्स ॥ २॥ गुरुदिण्णं च गणित्तं, महत्तरत्त च तस्स तुठेहिं । तेण कएसा चुण्णो, विसेसनामा निसीहस्स ।। ३ ।। १. पृ० १९९. २. पृ० २०१. ३. पृ० २७१-२८७. ४. पृ० ४११ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002096
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Mehta
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1989
Total Pages520
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Canon, & Agam
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy