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________________ निशीथ - विशेष चूर्णि ३०९ डाला गया है । तदनन्तर पाद आदि के आमर्जन, प्रमार्जन, परिमर्दन, अभ्यंग आदि से लगने वाले दोषों का उल्लेख करते हुए तद्विषयक प्रायश्चित्तों का निर्देश किया गया है । एक बार साफ करना आमर्जन है, बार-बार साफ करना प्रमार्जन है । अथवा हाथ से साफ करना आमर्जन है, रजोहरण से साफ करना प्रमार्जन है : आमज्जति एक्कसि, पमज्जति पुणो पुणो | अहवा हत्थेण आमज्जणं, रयहरणेण पमज्जणं ।' गंड, पिलक, अरतित, अर्शिका, भगंदर आदि रोगों के छेदन, शोधन, लेपन आदि का निषेध करते हुए गंड आदि का स्वरूप इस प्रकार बताया है : गच्छतीति गंडं, तं च गंडमाला, जं च अण्णं ( पिलगं ) तु पादगतं गंड, अरतितो जं ण पच्चति, असी अरिसा ता य अहिट्ठाणे णासाते व्रणेसु वा भवति, पिलिगा ( पिलगा ) सियलिया, भगंदरं अप्पण्णत्तो अधिट्ठाणे क्षतं किमियजालसंपण्णं भवति । बहुसत्थसंभवे अण्णतरेण तिक्खं स ( अ ) हिणाधारं जातमिति प्रकारप्रदर्शनार्थम् । एक्कसि ईषद् वा आच्छिंदणं, बहुबारं सुट्टु वा छिंदणं विच्छिदणं । इसी प्रकार नखाग्र को घिस कर तेज करना, उससे रोम आदि तोड़ना, उसे चिबुक, जंघा, गुह्यभाग आदि में घुमाना इत्यादि बातों का निषेध किया गया है तथा अक्षिमल, कर्णमल, दंतमल, नखमल आदि को खोद-खोद कर बाहर निकालने की मनाही की है | उच्चार- प्रस्रवण का घर में, गृहमुख पर, गृहद्वार पर, गृहप्रतिद्वार पर, गृलुक ( देहली ) पर अथवा गृहांगण में परित्याग करना भी इसी प्रकार निषिद्ध है । अन्य निषिद्ध स्थानों पर भी उसका परित्याग नहीं करना चाहिए । परित्याग करने पर मासलघु प्रायश्चित्त करना पड़ता है । इसी प्रकार असमय पर उच्चार-प्रस्रवण का परित्याग करनेवाले के लिए भी यही प्रायश्चित्त है । रात्रि आदि के समय बाहर निकलने से लगने वाले अनेक दोषों का वर्णन चूर्णिकार ने प्रस्तुत उद्देश के अन्त में किया है । चतुर्थ उद्देश : इस उद्देश में सूत्रों का सामान्य व्याख्यान करते हुए निम्नलिखित विषयों पर विशेष प्रकाश डाला गया है : अनुकूल और प्रतिकूल उपसर्ग, कायोत्सर्ग के विविध भंग, आयंबिल की परिसमाप्ति एवं आहारग्रहण, स्थापनाकुल और उनके विविध प्रकार, स्थापनाकुलसम्बन्धी सामाचारी, निर्ग्रन्थी की वसति और उसमें निर्ग्रन्थ द्वारा प्रवेश, राजा, अमात्य, सेठ, पुरोहित, सार्थवाह, ग्राममहत्तर, राष्ट्रमहत्तर और गणधर के लक्षण, ग्लान साध्वी और उसकी सेवा, अधिकरण १. पृ० २१०. Jain Education International २. पृ० २१५. For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002096
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Mehta
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1989
Total Pages520
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Canon, & Agam
File Size19 MB
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