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________________ ३०० जैन साहित्य का बृहद् इतिहास पञ्च वर्धन्ति कौन्तेय ! सेव्यमानानि नित्यशः। आलस्यं मैथुनं निद्रा, क्षुधाऽऽक्रोशश्च पञ्चमः ॥ स्त्यानद्धि निद्रा का स्वरूप बताते हुए चणिकार कहते हैं कि जिसमें चित्त थीण अर्थात् स्त्यान हो जाए-कठिन हो जाए-जम जाए वह स्त्यानदि निद्रा है। इस निद्रा का कारण अत्यन्त दर्शनावरण कर्म का उदय है : इद्धं चित्त तं थीणं जस्स अच्चंतदरिसणावरणावरणकम्मोदया सो थीणद्धी भण्णति । तेण य थीणण ण सो किचि उवलभति ।' स्त्यानद्धि का स्वरूप विशेष स्पष्ट करने के लिए आचार्य ने चार प्रकार के उदाहरण दिये हैं : पुद्गल, मोदक, कुम्भकार और हस्तिदंत । तेजस्काय आदि की व्याख्या करते हुए चूणिकार ने 'अस्य सिद्धसेनाचार्यों व्याख्यां करोति, एतेषां सिद्धसेनाचार्यों व्याख्यां करोति, इमा पुण सागणिय-णिक्खितदाराण दोण्ह वि भद्दबाहुसामिकता प्रायश्चित्तव्याख्यानगाथा, एयस्स इमा भद्दबाहुसामिकता वक्खाणगाहा' आदि शब्दों के साथ भद्रबाहु और सिद्धसेन के नामों का अनेक बार उल्लेख किया है । पृथ्वीकाय, अप्काय, तेजस्काय, वायुकाय, वनस्पतिकाय और त्रसकायसम्बन्धी यतनाओं, दोषों, अपवादों और प्रायश्चित्तों का प्रस्तुत पीठिका में अति विस्तृत विवेचन किया गया है । खान, पान, वसति, वस्त्र, हलन, चलन, शयन, भ्रमण, भाषण, गमन, आगमन आदि सभी आवश्यक क्रियाओं के विषय में आचारशास्त्र की दृष्टि से सूक्ष्म विचार किया गया है। प्राणातिपात आदि का व्याख्यान करते हुए चूर्णिकार ने मृषावाद के लौकिक और लोकोत्तर-इन दो भेदों का वर्णन किया है तथा लौकिक मृषावाद के अन्तर्गत मायोपधि का स्वरूप बताते हुए चार धूर्तो की कथा दी है । इस धूर्ताख्यान के चार मुख्य पात्रों के नाम हैं : शशक, एलाषाढ, मूलदेव और खंडपाणा । इस आख्यान का सार भाष्यकार ने निम्नलिखित तीन गाथाओं में दिया है : सस-एलासाढ मूलदेव. खंडा य जुण्णउज्जाणे । सामत्थणे को भत्त, अक्खातं जो ण सद्दहति ।।२९४।। चोरभया गावीओ, पोट्टलए बंधिऊण आणेमि । तिलअइरूढकुहाडे, वणगय मलणा य तेल्लोदा ॥२९५।। वणगयपाटण कुडिय, छम्मासा हत्थिलग्गण पूच्छे । रायरयग मो वादे, जहिं पेच्छइ ते इमे वत्था ॥२९६॥ 1. काय यो जोह का काम करणार १. पृ. ५५. २. पृ. ७५, ७६ आदि ३. पृ. १०२. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002096
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Mehta
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1989
Total Pages520
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Canon, & Agam
File Size19 MB
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