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________________ एकादश प्रकरण निशीथ-विशेषचणि जिनदासगणिकृत प्रस्तुत चूर्णि' मूल सूत्र, नियुक्ति एवं भाष्यगाथाओं के विवेचन के रूप में है। इसकी भाषा अल्प संस्कृतमिश्रित प्राकृत है। प्रारंभ में पीठिका है जिसमें निशीथ को भूमिका के रूप में तत्सम्बद्ध आवश्यक विषयों का व्याख्यान किया गया है। सर्वप्रथम चूर्णिकार ने अरिहंतादि को नमस्कार किया है तथा निशीथचूला के व्याख्यान का सम्बन्ध बताया है : नमिऊण रहताणं, सिद्धाण य कम्मचक्कमुक्काणं । सयणसिनेहविमुक्काण, सव्वसाहूण भावेण ॥१॥ सविसेसायरजुत्त, काउ पणामं च अत्थदायिस्स । पज्जुण्णखमासमणस्स, चरण-करणाणुपालस्स ॥२॥ एवं कयप्पणामो, पकप्पणामस्स विवरणं वन्ने।। पुव्वायरियकयं चिय, अहं पि तं चेव उ विसेसा ॥ ३ ॥ भणिया विमुत्तिचूला, अहणावसरो णिसीहचूलाए। को संबंधो तस्सा, भण्णइ इणमो णिसामेहि ॥४॥ इन गाथाओं में अरिहंत, सिद्ध और साधुओं को सामान्य रूप से नमस्कार किया गया है तथा प्रद्युम्न क्षमाश्रमण को अर्थदाता के रूप में विशेष नमस्कार किया गया है । निशीथ का दूसरा नाम प्रकल्प भी बताया गया है । पीठिका : प्रारंभ में चलाओं का विवेचन करते हुए चूणिकार ने बताया है कि चूला छः प्रकार की होती है । उसका वर्णन जिस प्रकार दशकालिक में किया गया है उसी प्रकार यहाँ भी कर लेना चाहिए ?' इससे सिद्ध होता है कि निशीथचूर्णि दशवकालिकचूणि के बाद लिखो गई है। इसके बाद आचार का स्वरूप बताते. १. सम्पादक-उपाध्याय श्री अमरचन्द्रजी व मुनि श्री कन्हैयालालजी, प्रकाशक-सन्मति ज्ञानपीठ, लोहामंडो, आगरा, सन् १९५७-१९६०. निशीथ : एक अध्ययन-पं० दलसुख मालवणिया, सन्मति ज्ञानपीठ, आगरा, सन् ९९५९. २. सा य छविहा-जहा दसवेयालिए भणिया तहा भाणियन्वा । -प्रथम भाग, पृ०२ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002096
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Mehta
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1989
Total Pages520
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Canon, & Agam
File Size19 MB
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