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दशवकालिकचूर्णि
२
२
३
५ छिदाहि रागं
५
विणए हि दोस
३
५ (प्र.उ. ) ५
५ (, ) १३ ५ (,, ) ५ (,, ) १५
१३
""
संपुच्छणं
संपुच्छगो (पाठा. .)
खवेत्तु
चित्त मंतमक्खा.
( पाठा. )
१० इच्चेतेहि छह
जीवनका ह
पाण-भूते य
अणातिले
जहाभागं
पाणियकम्मतं
इच्छेज्जा
घारए
५ (,, ) २७
५ ( द्वि. उ. ) २४
७
१२
७
२२
७
२३
6
३
९ (प्र. उ. )
९ (द्वि. उ. )
37
१५
४
९ (तृ. उ. ) १५
९ (च. उ. ) ११
१०
१०
१ चूलिका १४
१
१९
२
??
१
१
आयारभावदो सेण
गाथा नहीं
गाथा नहीं
भवियव्वं
चिट्ठे
+
साला
घुणिय
आरुहंतिएहि
४ दग
१९ विवज्जयित्ता
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कुसीलं
ण प्पचलेंति
३
४ एवं
निप्फेडो
छिदाहि दो सं विणएज्ज रागं
संपुच्छणा
खवेत्ता
चित्तमत्ता अक्खा
( पाठा. )
इच्चेहि छह
जीवनिकायेहि
पाण-भूते य
अणाउले
जहा भावं
दगभवणाणि य
इच्छेज्जा
चारए
गाथा नहीं
गाथा है
गाथा है
होयव्वयं
चिट्ठे
साला
घुणिय
आरहंतेहि
दग
विगिच धीर !
सकुसीलं णोपयति
निग्वाडो
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छिदाहि दोसं
विणएज्ज रागं
संपुच्छण
खवेत्ता
चित्तमंत्तमक्खा.
.)
इच्चेसि छण्हं
( पाठा.
२९५
जीवनिकायाणं
पाणि-भूयाई
अणाउले
जहाभागं
दगभवणाणि य
गेहेज्जा
घावए
आयारभाव दोसन्नू
गाथा नहीं
गाथा नहीं
?
सिक्खे चिट्ठे (पाठा.)
साहा
विहुय
अरहंतेहि
तण
एवं
विचित्र स्थिति है।
नियुक्तिगाथाओं की तो और भी अनेक गाथाएँ हैं जो हरिभद्र की टीका में तो हैं किन्तु चूर्णियों हां, इनमें कुछ गाथाएँ ऐसी अवश्य हैं जिनका चूर्णियों में दे दिया गया है किन्तु जिन्हें गाथाओं के रूप में उद्धृत नहीं किया गया है ।
विवज्जयित्ता
कुसिला
न पचलेंति
उत्तारो
तहा
नियुक्ति की ऐसी
में नहीं मिलतीं ।
अर्थ अथवा आशय
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