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________________ नवम प्रकरण जीतकल्प-बृहच्चूर्णि प्रस्तुत चूणि' सिद्धसेनसूरि की कृति है। इस चूणि के अतिरिक्त जोतकल्प सूत्र पर एक और चूणि लिखी गई है, ऐसा प्रस्तुत चूणि के अध्ययन से ज्ञात होता है । यह चूर्णि अथ से इति तक प्राकृत में है। इसमें एक भी वाक्य ऐसा नहीं है जिसमें संस्कृत शब्द का प्रयोग हुआ हो। प्रारंभ में आचार्य ने ग्यारह गाथाओं द्वारा भगवान् महावीर, एकादश गणधर, अन्य विशिष्ट ज्ञानी तथा सूत्रकार जिनभद्र क्षमाश्रमण-इन सबको नमस्कार किया है । ग्रंथ में यत्र-तत्र अनेक गाथाएं उद्धृत की गई हैं। इन गाथाओं को उद्धृत करते समय आचार्य ने किसी ग्रंथ आदि का निर्देश न करके 'तं जहा भणियं च', 'सो-इमो' इत्यादि वाक्यों का प्रयोग किया है। इसी प्रकार अनेक गद्यांश भी उद्धृत किये गये हैं। जीतकल्पचणि में भी उन्हीं विषयों का संक्षिप्त गद्यात्मक व्याख्यान है जिनका जीतकल्पभाष्य में विस्तार से विवेचन किया गया है। सर्वप्रथम आगम, श्रुत, आज्ञा, धारणा और जीतव्यवहार का स्वरूप समझाया गया है । जीत का अर्थ इस प्रकार किया गया है : जीयं ति वा करणिज्जं ति वा आयरणिज्जं ति वा एयट्ठ। जीवेइ वा तिविहे वि काले तेण जीयं ।। इसी प्रकार चूर्णिकार ने दस प्रकार के प्रायश्चित्त, नौ प्रकार के व्यवहार, मूलगुण, उत्तरगुण आदि का विवेचन किया है । अन्त में पुनः सूत्रकार जिनभद्र को नमस्कार करते हुए निम्न गाथाओं के साथ चूणि समाप्त की है :५ इति जेण जीयदाणं साहूणऽइयारपंकपरिसुद्धिकरं । गाहाहिं फुडं रइयं महुरपयत्थाहिं पावणं परमहियं ॥ जिणभदखमासमणं निच्छियसुत्तत्थदायगामलचरणं । तमहं वंदे पयओ परमं परमोवगारकारिणमहग्धं ॥ १. विषमपदव्याख्यालंकृत सिद्धसेनगणिसन्दृब्ध बृहच्चूणिसमन्वित जीतकल्पसूत्र संपादक :--मुनि जिनविजय, प्रकाशक :-जैन साहित्य संशोधक समिति अहमदाबाद, सन् १९२६. २. अहवा बितियचुन्निकाराभिपाएण चत्तारि-जीतकल्पचूर्णि, पृ० २३. ३. वही, पृ० ३,४,२१. ४. वही, पृ० ४. ५. वही, पृ० ३०. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002096
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Mehta
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1989
Total Pages520
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Canon, & Agam
File Size19 MB
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