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________________ नवम प्रकरण पञ्चकल्प महाभाष्य यह भाष्य' पञ्च कल्पनियुक्ति के विवेचन के रूप में है। इसमें कुल मिलाकर २६६५ गाथाएं हैं जिनमें केवल भाष्य को २५७४ गाथाएँ हैं । प्रारम्भ में नियुक्तिकारकृत निम्न गाथा है : वंदामि भद्दबाहुँ पाईणं चरिमसगलसूयनाणि । सुत्तस्स कारगमिसिं दसाण कप्पे य ववहारे ॥१॥ यह गाथा दशाश्रुतस्कन्ध को नियुक्ति तथा चूणि में भी प्रारम्भ में ही है। इस गाथा का व्याख्यान करते हुए भाष्यकार ने 'भद्रबाहु' का अर्थ 'सुन्दर बाहुओं वाला' किया है । अन्य भद्रबाहुओं से प्रस्तुत भद्रबाहु का पृथक्करण करने के लिए 'प्राचीन' (गोत्र), 'चरमसकलश्रुतज्ञानी' और 'दशा-कल्प-व्यवहार सूत्रकार' विशेषण दिये गये हैं । एतद्विषयक गाथाएँ ऐतिहासिक दृष्टि से विशेष महत्त्वपूर्ण होने के कारण यहाँ उद्धृत की जाती हैं : भद्दत्ति सुंदर त्ति य तुल्लत्थो जत्थ सुदरा बाहू । सो होति भद्दबाहू गोण्णं जेणं तु वालत्ते ॥७॥ पाएणं लक्खिजइ पेसलभावो तु बाहुजुयलस्स । उववण्णमतो णामं तस्सेयं भद्दबाहु त्ति ॥८॥ अण्णे वि भद्दबाहू विसेसणं गोत्तगहण पाईणं । अण्णेसि पऽविसिठे विसेसणं चरिमसगलसुत्तं ॥ ९ ॥ चरिमो अपच्छिमो खलु चोद्दसपुव्वा उ होति सगलसुत्तं । सेसाण वुदासट्टा सुत्तकरज्झयणमेयस्स ॥ १० ॥ कि तेण कयं सुत्तं जं भण्णति तस्स कारतो सो उ। भण्णति गणधारीहि सव्वसुय चेव पूव्वकतं ॥११॥ तत्तो च्चिय णिज्जूढं अणुग्गहट्ठाय संपयजतीणं । सो सुत्तकारओ खलु स भवति दसकप्पववहारे ॥१२॥ कल्प ( कप्प) का व्याख्यान करते हुए भाष्यकार कहते हैं कि कल्प दो प्रकार का होता है : जिनकल्प और स्थविरकल्प । इन दोनों प्रकार के कल्पों का - १. इस भाष्य की हस्तलिखित प्रति मुनि श्री. पुण्यविजयजी की कृपा से प्राप्त हुई है । यह प्रति मुनि श्री ने वि० सं० १९८३ में लिखकर तैयार की है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002096
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Mehta
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1989
Total Pages520
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Canon, & Agam
File Size19 MB
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