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________________ विशेषावश्यकभाष्य १८३ अन्तरकाल कहते हैं। वह सामान्याक्षरात्मक श्रुत में जघन्यतः अन्तर्मुहूर्त है, उत्कृष्टतः अनन्तकाल है। शेष में जघन्यतः अन्तमहर्त है, उत्कृष्टतः देशोन अर्धपरावर्तक है।' अविरहित द्वार: सम्यक्त्व, श्रुत तथा देशविरति सामायिक का उत्कृष्ट अविरह काल आवलिका का असंख्येय भाग है, चारित्र ( सर्वविरति ) का आठ समय है। जघन्यतः सब सामायिकों का दो समय है । ___सम्यक्त्व और श्रुत का उत्कृष्ट विरहकाल सप्त अहोरात्र है, देशविरति का द्वादश अहोरात्र है । सर्वविरति का पंचदश अहोरात्र है। भव द्वार: सम्यग्दृष्टि तथा देशविरत उत्कृष्टतः पल्य के असंख्येय भाग जितने भवों को प्राप्त करते हैं। सर्वविरत उत्कृष्टतः आठ भवों को प्राप्त करता है। श्रुतसामायिक वाला उत्कृष्टतः अनन्त भव प्राप्त करता है ( जघन्यतः सब के लिए एव भव है)। आकर्ष द्वार: ____ आकर्ष का अर्थ है आकर्षण अर्थात् प्रथम बार अथवा छोड़े हुए का पुनर्ग्रहण। सम्यक्त्व, श्रुत और देशविरति सामायिक का एक भव में उत्कृष्ट आकर्ष सहस्रपृथक्त्व बार होता है, सर्वविरति का शतपृथक्त्व बार होता है ( जघन्यतः सब का एक बार ही आकर्ष है ) । नाना भवों की अपेक्षा से सम्यक्त्व और देशविरति के उत्कृष्टतः असंख्येय सहस्रपृथक्त्व आकर्ष होते हैं, सर्वविरति के सहस्रपृथक्त्व आकर्ष होते हैं, श्रुत के आकर्ष तो अनन्त हैं।" स्पर्शन द्वार: सम्यक्त्व-चरणयुक्त प्राणी उत्कृष्टतः सम्पूर्ण लोक का स्पर्श करते हैं (जघन्यतः असंख्य भाग का स्पर्श करते हैं )। श्रुत के सप्तचतुर्दशभाग (१४) तथा पंचचतुर्दशभाग (१४) स्पर्शनीय हैं। देश विरति के पंचचतुर्दशभाग (२४) स्पर्शनीय हैं। निरुक्ति द्वार अन्तिम द्वार का नाम निरुक्ति है। सम्यक्त्व सामायिक की निरुक्ति इस प्रकार है : सम्यग्दृष्टि, अमोह, शुद्धि, सद्भावदर्शन, बोधि, अविपर्यय, सुदृष्टि आदि सम्यक्त्व के निरुक्त-पर्याय हैं । श्रुत सामायिक की निरुक्ति करते हुए कहा गया है कि अक्षर, संज्ञी, सम्यक्, सादिक, सपर्यवसित, गमिक और अंगप्रविष्ट१. गा० २७७५. २. गा० २७७७. ३. गा० २७७८. ४. गा० २७७९. ५. गा० २७८०-८१. ६. गा० २७८२. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002096
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Mehta
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1989
Total Pages520
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Canon, & Agam
File Size19 MB
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