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________________ प्रास्ताविक मूल ग्रंथ के रहस्योद्घाटन के लिए उसकी विविध व्याख्याओं का अध्ययन अनिवार्य नहीं तो भी आवश्यक तो है ही। जब तक किसी ग्रन्थ की प्रामाणिक व्याख्या का सूक्ष्म अवलोकन नहीं किया जाता तब तक उस ग्रंथ में रही हुई अनेक महत्त्वपूर्ण बातें अज्ञात ही रह जाती हैं। यह सिद्धान्त जितना वर्तमानकालीन मौलिक ग्रंथों पर लागू होता है उससे कई गुना अधिक प्राचीन भारतीय साहित्य पर लागू होता है। मूलग्रंथ के रहस्य का उद्घाटन करने के लिए उस पर व्याख्यात्मक साहित्य का निर्माण करना भारतीय ग्रंथकारों की बहुत पुरानी परंपरा है। इस प्रकार के साहित्य से दो प्रयोजन सिद्ध होते हैं । व्याख्याकार को अपनी लेखनी से ग्रंथकार के अभीष्ट अर्थ का विश्लेषण करने में असीम आत्मोल्लास होता है तथा कहीं-कहीं उसे अपनी मान्यता प्रस्तुत करने का अवसर भी मिलता है। दूसरी ओर पाठक को ग्रंथ के गूढार्थ तक पहुँचने के 'लिए अनावश्यक श्रम नहीं करना पड़ता। इस प्रकार व्याख्याकार का परिश्रम स्व-पर उभय के लिए उपयोगी सिद्ध होता है। व्याख्याकार की आत्मतुष्टि के साथ ही साथ जिज्ञासुओं की तृषा भी शान्त होती है । इसी पवित्र भावना से भारतीय व्याख्याग्रंथों का निर्माण हुआ है। जैन व्याख्याकारों के हृदय भी इसी भावना से भावित रहे हैं। प्राचीनतम जैन व्याख्यात्मक साहित्य में आगमिक व्याख्याओं का अति महत्त्वपूर्ण स्थान है । इन व्याख्याओं को हम पांच कोटियों में विभक्त करते हैं : १. नियुक्तियाँ ( निज्जुत्ति ), २. भाष्य ( भास ), ३. चूर्णियाँ ( चुण्णि ), ४. संस्कृत टीकाएँ और ५. लोकभाषाओं में रचित व्याख्याएँ । आगमों के 'विषयों का संक्षेप में परिचय देनेवाली संग्रहणियाँ भी काफी प्राचीन हैं । पंचकल्पमहाभाष्य के उल्लेखानुसार संग्रहणियों की रचना आर्य कालक ने की है । पाक्षिकसूत्र में भी नियुक्ति एवं संग्रहणी का उल्लेख है। नियुक्तियाँ : नियुक्तियाँ और भाष्य जैन आगमों की पद्यबद्ध टीकाएँ हैं । ये दोनों प्रकार की टीकाएँ प्राकृत में हैं। नियुक्तियों में मूल ग्रन्थ के प्रत्येक पद का व्याख्यान न किया जाकर विशेष रूप से पारिभाषिक शब्दों का ही व्याख्यान किया गया है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002096
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Mehta
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1989
Total Pages520
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Canon, & Agam
File Size19 MB
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