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"चत्तारि अ वेआ संगोवंगा-एआई मिच्छदिहिस्स मिच्छत्तपरिग्गहिआई मिच्छासुअं। एयाई चेव सम्मदिहिस्ल सम्मत्तपरिग्गहिआई सम्मसुअं । अहवा मिच्छदिट्ठिस्स एयाई चेव सम्मसुअं सम्मत्तहेउत्तणओ । से तं मिच्छासुअं"
--आर्य श्री देववाचक-नन्दिसूत्र, पृ० १९४ “भई मिच्छादसणसमूहमइयस्त अमयसारस्स । जिणवयणस्स भगवओ संचिग्गसुहाहिगम्मस्ल" ॥ ६९ ॥
-आर्य श्री सिद्धसेनदिवाकर-सन्मतिप्रकरण, तृतीय काण्ड "विसय-सरूव-ऽणुवंधेण होइ सुद्धो तिहा इहं धम्मो। जं ता मुक्खासयओ सन्चो किल सुंदरो नेओ” ॥ २० ॥
-आर्य श्री हरिभद्र सूरि-द्वितीय विंशिका ************************
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