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जीवाजीवाभिगम
सोलह प्रकार के रत्न — रत्न, वज्र, वैडूर्य, लोहित, मसारगल्ल, हंसगर्भ, पुलक, सौगन्धिक, ज्योतिरस, अंजन, अंजनपुलक, रजत, जातरूप, अंक, स्फटिक, अरिष्ट' ( ६९ ) ।
अस्त्र-शस्त्रों के नाम -- मुद्दर, मुसुंठ, करपत्र ( करवत ), असि, शक्ति, हल, गदा, मूसल, चक्र, नाराच, कुंत, तोमर, शूल, लकुट, भिंडिपाल ( ८९ ) ।
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धातुओं आदि के नाम - लोहा, तांबा, त्रपुस, सीसा, रूप्य, सुवर्ण, हिरण्य, कुंभकार की अग्नि, ईंट पकाने की अग्नि, कवेल पकाने की अग्नि, यन्त्रपाटक चुल्ली ( जहाँ गन्ने का रस पकाया जाता है ) ( ८९ ) ।
जम्बूद्वीप के एकोरु नामक द्वीप में विविध कल्पवृक्षों का वर्णन करते हुए निम्न विषयों का उल्लेख किया गया है :
मद्य के नाम - चन्द्रप्रभा ( चन्द्र के समान जिसका रंग हो ), मणिशलाका, चरसीधु, वरवारुणी, फलनिर्याससार ( फलों के रस से तैयार की हुई मदिरा ), पत्रनिर्याससार, पुष्प निर्याससार, चोयनिर्याससार, बहुत द्रव्यों को मिलाकर तैयार की हुई, सन्ध्या के समय तैयार हो जानेवाली, मधु, मेरक, रिष्ठ नामक रत्न के समान वर्णवाली ( इसे जंबूफलकलिका भी कहा गया है ), दुग्धजाति ( पीने में दूध के समान मालूम होती हो ), प्रसन्ना, नेल्लक ( अथवा तल्लक ), शतायु ( सौ बार शुद्ध करने पर भी जैसी की तैसी रहने वाली ), खर्जूरसार, मृद्वीकासार ( द्राक्षासव ), कापिशायन, सुपक्व, क्षोदरस ( ईख के रस को पकाकर बनाई हुई ) ।
१. रत्नों के लिये देखिये - उत्तराध्ययन सूत्र ३६, ७५ आदि; पनवणा १,१७, बृहत्संहिता ( ७९-८४ आदि); दिव्यावदान ( १८, पृ० २२९ ); परमत्थदीपनी ( पृ० १०३ )।
२. शस्त्रों के लिए देखिये - प्रश्नव्याकरण ( ४, १८ ); मभिधानचिन्तामणि ( ३,४४६ ) ।
३. देखिये -- जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति सू० २०, पृ० ९९ आदि; पद्मवणा १७, पृ० ३६ ४ आदि; जगदीशचन्द्र जैन, जैन आगम साहित्य में भारतीय समाज, पृ० १९८-२००. मद्यपान कर लेने पर साधु को क्या करना चाहियेबृहत्कल्पसूत्रभाष्य ( ९५४ - ६ ) ।
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