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________________ तृतीय प्रकरण जीवाजीवाभिगम ~~~~urnmurramremiummernmeramremins . जीवाजीवाभिगम अथवा जीवाभिगम' जैन आगमों का तीसरा उपांग है। इसमें महावीर और गौतम गणधर के प्रश्नोत्तर के रूप में जीव और अजीव के भेद-प्रभेदों का विस्तृत वर्णन है। इसमें ९ प्रकरण (प्रतिपत्ति ) और २७२ सूत्र हैं। तीसरा प्रकरण सब प्रकरणों से बड़ा है जिसमें देवों तथा द्वीप और -सागरों का विस्तृत वर्णन किया गया है। जीवाजीवाभिगम के टीकाकार मलयगिरि ने इसे स्थानांग का उपांग बताया है। इस उपांग पर पूर्वाचार्यों ने टीकाएँ लिखी थीं जो गंभीर और संक्षिप्त होने के कारण दुर्बोध थी, इसलिए मलयगिरि ने यह विस्तृत टीका लिखी है। मलयगिरि ने अनेक स्थलों पर वाचनाभेद होने का उल्लेख किया है। 'पहली प्रतिपत्ति: ___ पहली जीवाजीवाभिगम प्रतिपत्ति है। संसारी जीव दो प्रकार के होते हैंत्रस और स्थावर ( सूत्र ९)। स्थावर जीव तीन प्रकार के होते हैं-पृथ्वीकाय, 1. (भ) मलयगिरिकृत वृत्तिसहित-देवचंद लालभाई जैन पुस्तकोद्धार फंड, बम्बई, सन् १९१९. (आ) हिन्दी अनुवादसहित-अमोलक ऋषि, हैदराबाद, बी. सं० २४४५. (इ) मलयगिरिकृत वृत्ति व गुजराती विवेचन के साथ-धनपतसिंह, अहमदाबाद, सन् १८८३. परम्परा के अनुसार इसमें २० उद्देश थे, और २०वें उद्देश की व्याख्या शालिभद्रसूरि के शिष्य चन्द्रसूरि ने की थी। अभयदेव ने भी इसके तृतीय पद पर संग्रहणी लिखी थी। २. दीवसागरपत्ति नामक उपांग अलग भी है जो आजकल अनुपलब्ध है। ३. इह भूयान् पुस्तकेषु वाचनाभेदो गलितानि च सूत्राणि बहुषु पुस्तकेषु यथावस्थितवाचनाभेदप्रतिपस्यर्थ गलितसूत्रोद्धरणार्थ चैवं सुगमान्यपि विवियन्ते (जीवाजीवाभिगम टीका ३, ३७६ )। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002095
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchandra Jain, Mohanlal Mehta
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1966
Total Pages462
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Canon, & Agam
File Size15 MB
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