________________
जैन साहित्य का बृहद् इतिहास प्रस्तुत प्रकीर्णक में अनेक प्रकार के परीषह–कष्ट सहनकर पंडितमरणपूर्वक मुक्ति प्राप्त करने वाले अनेक महापुरुषों के दृष्टान्त दिये गये हैं। इसमें अनित्यादि बारह भावनाओं का भी विवेचन किया गया है ।'
अन्त में मरणसमाधि के आधारभूत आठ ग्रंथों का नामोल्लेख करते हुए ग्रंथकार ने इसके मरणविभक्ति एवं मरणसमाधि इन दो नामों का निर्देश किया है:
एयं मरणविभत्तिं मरणविसोहिं च नाम गुणरयणं । मरणसमाही तइयं संलेहणसुयं चउत्थं च ॥ ६६१॥
पंचम भत्तपरिण्णा छळं आउरपञ्चक्खाणं च । सत्तम महपष्चक्खाणं अट्ठम आराहणपइण्णो ।। ६६२ ।। इमाओ अ सुयाओ भावा उ गहियंमि लेस अत्थाओ। मरणविभप्ती रइयं बिय नाम मरणसमाहिं च ।। ६६३ ।।
@
१. गाथा ४२३ से ५२२. २. गाथा ५७२ से ३३८.
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org