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द्वितीय प्रकरण
आतुरप्रत्याख्यान
आउरपच्चक्खाण - आतुरप्रत्याख्यान' को मरण से सम्बन्धित होने के कारण अन्तकाल - प्रकीर्णक भी कहा जाता है । इसे बृहदातुरप्रत्याख्यान भी कहते हैं । इसमें ७० गाथाएँ हैं । दसवीं गाथा के बाद का कुछ भाग गद्य में है । इस प्रकीर्णक में प्रधानतया बालमरण एवं पण्डितमरण का विवेचन है ।
प्रारम्भ में आचार्य ने बालपण्डितमरण का स्वरूप बताया है : देसिक्कदेसविरओ सम्मद्दिट्ठी मरिज्ज जो जीवो । जिणसासणे भणियं ॥ १ ॥ स्वरूप बताया गया हैं। आचार्य ने मरण बालपंडितों का और पंडितों का । एत
तं होइ बालपंडियमरणं इसके बाद पंडित पंडितमरण का तीन प्रकार का बताया है : बालों का, द्विषयक गाथा इस प्रकार है :
तिविहं भणति मरणं बालाणं बालपंडियाणं च । तइयं पंडितमरणं जं केवलिणो अणुमरंति ॥ ३५ ॥
मारणान्तिक प्रत्याख्यान की उपादेयता बताते हुए आचार्य ने अन्त में लिखा है :
1.
निक्कसायरस दंतस्स सूरस्स ववसाइणो । संसार परिभीयरस पच्चक्खाणं सुहं भवे ॥ ६८ ॥ एयं पच्चक्खाणं जो काही मरणदेसकालम्मि । धीरो अमूढसन्नो सो गच्छइ सासयं ठाणं ॥ ६९ ॥ धीरो जर मरणविऊ वीरो विन्नाणनाणसंपन्नो । लोगस्सुजोयगरो दिसउ खयं सव्वदुक्खाणं ।। ७० ।।
(अ) बालाभाई ककलभाई, अहमदाबाद, वि० सं० १९६२. (आ) जैनधर्म प्रसारक सभा, भावनगर, वि० सं० १९६६.
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