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जैन साहित्य का वृहद् इतिहास किया जा सकता है। किसी व्यक्ति को किसी स्थान पर एक बार देखकर पुनः उसके अन्यत्र दिखाई देने पर उसे अच्छी तरह पहिचान लेना विशेषदृष्ट अनुमान का उदाहरण है।
उपमान:
उपमान के दो भेद हैं : साधोपनीत और वैधोपनीत' । साधोपनीत तीन प्रकार का है : किंचित्साधोपनीत, प्रायःसाधोपनीत और सर्वसाधोपनीत ।
किंचित्साधोपनीत उसे कहते हैं जिसमें कुछ साधर्म्य हो । उदाहरण के लिए जैसा मेरु पर्वत है वैसा ही सर्षप का बीज है ( क्योंकि दोनों ही मूर्त हैं)। इसी प्रकार जैसा आदित्य है वैसा ही खद्योत है ( क्योंकि दोनों ही प्रकाशयुक्त हैं ), जैसा चन्द्र है वैसा ही कुमुद है ( क्योंकि दोनों ही शीतलता प्रदान करते हैं)।
प्रायःसाधोपनीत उसे कहते हैं जिसमें करीब-करीब समानता हो। उदाहरणार्थ जैसी गाय है वैसी ही नीलगाय है।
सर्वसाधोपनीत उसे कहते हैं जिसमें सब प्रकार की समानता हो। इस प्रकार की उपमा देश-काल आदि की भिन्नता के कारण नहीं मिल सकती। अतः उसकी उसी से उपमा देना सर्वसाधोपनीत उपमान है। इसमें उपमेय एवं उपमान अभिन्न होते हैं। उदाहरण के लिए अर्हत् ही अर्हत् के तुल्य कार्य करता है, चक्रवर्ती ही चक्रवर्ती के समान कार्य करता है आदि ।
वैधयोपनीत भी इसी तरह तीन प्रकार है : किंचित् वैधोपनीत, प्रायःवैधोपनीत और सर्ववैधोपनीत ।
आगम:
आगम दो प्रकार के हैं : लौकिक और लोकोत्तरिक । मिथ्यादृष्टियों के बनाये हुए ग्रन्थ लौकिक आगम हैं जैसे रामायण, महाभारत आदि । लोकोत्तरिक
१. सू०७४-८२.
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