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________________ २७४ जैन साहित्य का बृहद् इतिहास अंगादान में प्रविष्ट करना अथवा अंगादान को अंगुलियों से पकड़ना-हिलाना, अंगादान का मर्दन करना, तेल आदि से अंगादान का अभ्यंग करना, पद्मचूर्ण आदि से अंगादान का उबटन करना, अंगादान को पानी से धोना, अंगादान के ऊपर की त्वचा दूर कर अन्दर का भाग खुला करना, अंगादान को सूंघना, अंगादान को किसी अचित्त छिद्र में प्रविष्ट कर शुक्र- पुद्गल निकालना, सचित्त पुष्पादि सूंघना, सचित्त पदार्थ पर रखा हुआ सुगन्धित द्रव्य सूंघना, मार्ग में कीचड़ आदि से पैरों को बचाने के लिए दूसरों से पत्थर आदि रखवाना, ऊंचे स्थान पर चढ़ने के लिए दूसरों से सीढ़ी आदि रखवाना, भरे हुए पानी को निकालने के लिए नाली आदि बनवाना, दूसरों से पर्दा आदि बनवाना, सूई आदि तीखी करवाना, कैंची ( पिप्पलक ) को तेज करवाना, नखछेदक को ठीक करवाना, कर्णशोधक को साफ करवाना, निष्प्रयोजन सूई की याचना करना, निष्प्रयोजन कैंची माँगना, निष्प्रयोजन नखछेदक एवं कर्णशोधक की याचना करना, अविधिपूर्वक सूई आदि मांगना, अपने लिए मांग कर लाई हुई सूई आदि दूसरों को देना, व सीने के लिए लाई हुई सूई से पैर आदि का काँटा निकालना, सूई आदि अविधिपूर्वक वापिस सौंपना, अलाबु अर्थात् तुंबे का पात्र, दारु अर्थात् लकड़े का पात्र और मृत्ति अर्थात् मिट्टी का पात्र दूसरों से साफ करवाना सुधरवाना, दण्ड, लाठी आदि दूसरों से सुधरवाना, पात्र पर शोभा के लिए कारी आदि लगाना, पात्र को अविधिपूर्वक बाँधना, पात्र को एक ही बंध ( गाँठ ) से बाँधना, पात्र को तीन से अधिक बंध से बांधना, पात्र को अतिरिक्त बंध से बाँध कर डेढ़ महीने से अधिक रखना, वस्त्र पर ( शोभा के लिए) एक कारी लगाना, वस्त्र पर तीन से अधिक कारियां लगाना, अविधि से वस्त्र सीना, वस्त्र के एक पल्ले के ( शोभा के निमित्त ) एक गांठ देना, वस्त्र के तीन पल्लों (फलित ) के तीन से अधिक गांठें देना ( जीर्ण वस्त्र को अधिक समय तक चलाने के लिए ), वस्त्र को निष्कारण ममत्व भाव से गांठ देकर बँधा रखना, वस्त्र के अविधिपूर्वक गांठ लगाना, अन्य जाति के ( श्वेत रंग के अतिरिक्त ) वस्त्र ग्रहण करना, अतिरिक्त वस्त्र डेढ़ महीने से अधिक रखना, अपने रहने के मकान का धूआं दूसरे से साफ करवाना, निर्दोष आहार में सदोष आहार की थोड़ी-सी मात्रा मिली हो उस आहार ( पूर्तिकर्म) का उपभोग करना । दूसरा उद्देश : द्वितीय उद्देश में लघु-मास अथवा मास- लघु ( एकाशन ) प्रायश्चित्त के योग्य निम्न क्रियाओं का निर्देश किया गया है : Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002095
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchandra Jain, Mohanlal Mehta
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1966
Total Pages462
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Canon, & Agam
File Size15 MB
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