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द्वितीय प्रकरण
आवश्यक ennnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnn
आवस्सय-आवश्यक' आगमों का दूसरा मूलसूत्र है। इस ग्रन्थ में नित्यकर्म के प्रतिपादक आवश्यक क्रियानुष्ठानरूप कर्तव्यों का उल्लेख है, इसलिए इसे आवश्यक कहा गया है । इसमें छः अध्याय हैं-सामायिक, चतुर्विंशतिस्तव, वंदन, प्रतिक्रमण, कायोत्सर्ग और प्रत्याख्यान ।
1. (अ) भद्रबाहुकृत नियुक्ति की मलयगिरिकृत टीका के साथ--आग
मोदय समिति, बम्बई, सन् १९२८ (प्रथम भाग), १९३२ (द्वितीय भाग); देवचन्द लालभाई जैन पुस्तकोद्धार, सूरत,
सन् १९३६ (तृतीय भाग). (आ) भद्रबाहुकृत नियुक्ति की हरिभद्रविहित वृत्तिसहित--भागमोदय
समिति, बम्बई, सन् १९१६-१७. (इ) भद्रबाहुकृत नियुक्ति की माणिक्यशेखरविरचित दीपिकासहित--
विजयदान सूरीश्वर जैन ग्रन्थमाला, सूरत, सन् १९३९-१९४१. (ई) मलधारी हेमचन्द्रविहित प्रदेशव्याख्या--देवचन्द लालभाई जैन
पुस्तकोद्धार, बम्बई, सन् १९२०. (3) गुजराती अनुवादसहित-भीमसी माणेक, बम्बई, सन् १९०६. (ऊ) हिन्दी अनुवादसहित-अमोलकऋषि, हैदराबाद, वी० सं० २४४६, (ऋ) हिन्दी विवेचनसहित (श्रमणसूत्र)--उपाध्याय भमर मुनि,
सन्मति ज्ञानपीठ, आगरा, वि० सं० २००७. (ए) संस्कृत व्याख्या व उसके हिन्दी-गुजराती अनुवाद के साथ---.. . मुनि घासीलाल, जैन शास्त्रोद्धार समिति, राजकोट, सन् १९५८.
(ऐ) जिनदासकृत चूर्णि, रतलाम, सन् १९२८. २. अवश्यं कर्त्तव्यं आवश्यकं, श्रमणादिभिरवश्यं उभयकालं क्रियते ।
--मलयगिरि, आवश्यक-टीका, पृ० ८६ म.
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