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जैन साहित्य का बृहद् इतिहास काकमाची, वुच्चु (?), पटोलकन्दली, विउवा, वत्थुल, बदर (बेर ), पत्तउर, सीयउर, जवसय ( जवासा), निर्गुडी, अत्थई, तलउडा, सन, पाण, कासमद्द, अग्घाडग (अपामार्ग, चिचड़ा-पाइअसद्दमहण्णव), श्यामा, सिंदुवार (सम्हाल), करमद्द ( करोंदा), अद्दरूसग ( अडूसा), करीर, ऐरावण, महित्थ, जाउलग, मालग, परिली, गजमारिणी, कुचकारिया, भंडी ( मंजीठ ), जीवन्ती, केतकी, गंज, पाटला ( पाढल), दासि, अङ्कोल (२३)।
गुल्म अनेक प्रकार के होते हैं-सै रियक, नवमालिका, कोरंटक, बन्धुजीवक ( दुपहरिया ), मनोज्ञ, पिइय, पाण, कणेर, कुब्जक ( सफेद गुलाब ), सिंदुवार, जाती, मोगरा, जूही, मल्लिका, वासन्ती, वत्थुल, कत्थुल, सेवाल, ग्रन्थी, मृगदन्तिका, चम्पकजाति, नवणीइया, कुन्द, महाजाति (२३)। __ लताएँ अनेक प्रकार की होती हैं-पद्मलता, नागल ता, अशोकलता, चंपकलता, चूतलता, वनलता, वासन्तीलता, अतिमुक्तकलता, कुन्दलता, श्यामलता (२३)।
वल्लियाँ अनेक प्रकार की होती हैं-पूसफली, कालिंगी ( जङ्गली तरबूज की बेल), तुम्बी, त्रपुषी ( ककड़ी), एलवालुंकी (चिर्भट, एक तरह की ककड़ी), घोषातकी, पण्डोला, पञ्चांगुलिका, नीली, कंगूया, कंडुइया, कट ठुइया, ककोडी ( ककरैल), कारियल्लई (करेला ), कुयधाय, वागुलीया, पाववल्ली, देवदाली, आस्फोता, अतिमुक्तक, नागलता, कृष्णा, सूरवल्ली (सूरजमुखी की बेल ), सङ्घट्टा, सुमणसा, जासुवण, कुविंदवल्ली, मृद्वीका (अंगूर की बेल ), अम्बावल्ली, क्षीरविदारिका, जयन्ती, गोपाली, पाणी, मासावल्ली, गुञ्जावल्ली, वच्छाणी ( वत्सादनी, गजपीपल), शशबिन्दू, गोत्रस्पर्शिका, गिरिकर्णिका, मालुका, अञ्जनकी, दधिपुष्पिका, काकणी, मोगली, अर्कबोंदि (२३)। .
पर्वक ( पर्व-गाँठ वाले )-इक्षु, इक्षुवाटिका, वीरण, इक्कड़, मास, सुण्ट, शर, वेत्र (बेत), तिमिर, शतपोरक, नल (एक प्रकार का तृण), बाँस, वेलू ( बाँस का प्रकार ), कनक (बाँस का प्रकार ), कर्कावंश, चापवंश, उदक, कुडक, विमत ( अथवा विसय), कंडावेणू , कल्याण (२३)।
तृण-सेडिय, भंतिय, होतिय, दर्भ, कुश, पव्यय, पोड इल, अर्जुन, आषाढक, रोहितांश, सुय, वेय, क्षीर, भुस, एरंड, कुरुविंद, करकर, मुटु, विभंगु, मधुरतृग, धुरय, सिप्पिय, सुंकलीतृग (२३)।
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