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( द्वितीय संस्करण) ज्ञातव्य है कि अब तक इस इतिहास के सात भाग प्रकाशित हो चुके हैं और आशा है कि आठवां भाग भी शीघ्र ही पूर्ण होकर प्रकाशित होगा।
इसी प्रकार हिन्दी जैन साहित्य का बृहद इतिहास भी तीन खण्डों में प्रकाशित हो रहा है। इसका भी प्रथम मरुगुर्जर खण्ड-आदिकाल से १६वीं शताब्दी तक प्रकाशित हो चुका है। शेष खण्ड भी शीघ्र प्रकाशित होंगे। साथ ही दार्शनिक जैन साहित्य का इतिहास भी तैयार किया जा रहा है ।
सागरमल जैन १६-१२-१९८९
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