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प्रकाशकीय
द्वितीय संस्करण
जैन साहित्य का बृहद् इतिहास, भाग - १ [ द्वितीय संस्करण ] पाठकों के सम्मुख प्रस्तुत करने में अत्यन्त हर्ष का अनुभव हो रहा है । इस ग्रंथ का प्रथम संस्करण सन् १९६६ में प्रकाशित हुआ था और विगत ४ वर्षों से इसकी प्रतियाँ विक्रयार्थ अनुपलब्ध थीं। इसकी उपयोगिता और माँग को देखते हुए संस्थान ने इसका द्वितीय संस्करण प्रकाशित करने का निर्णय किया । यद्यपि इसमें पर्याप्त संशोधन की अपेक्षा थी, किन्तु विलम्ब से बचने हेतु इसमें प्रथम संस्करण की सामग्री को ही यथावत् रखा गया है ।
इस ग्रन्थ के प्रकाशन की व्यवस्था संस्थान के निदेशक डा० सागरमल जैन ने की है, अतः मैं सर्वप्रथम उनके प्रति आभार व्यक्त करता हूँ । प्रूफ रीडिंग और शब्दानुक्रमणिका तैयार करने में डा० अशोक कुमार सिंह, डा० शिवप्रसाद और श्री इन्द्रेश चन्द्र सिंह का सहयोग प्राप्त हुआ है, अतः इसके लिये हम उनके आभारी हैं ।
अन्त में इस ग्रन्थ के सुन्दर तथा त्वरित मुद्रण के लिये मैं वर्धमान मुद्रणालय, वाराणसी के संचालकों के प्रति कृतज्ञता ज्ञापित करता हूँ ।
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मंत्री पार्श्वनाथ विद्याश्रम शोध संस्थान वाराणसी
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