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________________ ( ३८ ) दीपिका लघुवृत्ति १३०९० प्रदेशव्याख्या (हेमचन्द्र ) ४६०० (?) विशेषावश्यकभाष्य गा० ४३१४, गा० ३६७२, ग्रन्थान ५०००, गा० ४३३६ " , वृत्ति स्वोपज्ञ ,, ,, वृत्ति ( कोट्याचार्य) १३७०० " , वृत्ति ( हेमचन्द्र ) २८०००, २८९७६ (४) पिण्डनियुक्ति ७६९१ " शिष्यहिता (वीरगणि = समुद्रघोष) " वृत्ति (माणिक्यशेखर) " अवचूरि (क्षमारल) (५) ओघनियुक्ति १४६०, गा० ११६२, गा० ११५४, गा० ११६५, गा० ११६४ " टीका (द्रोण०) सह ७३८५, ८३८५ " टीका (द्रोण०) ६५४५ " अवचूरि (ज्ञानसागर) ३४०० (६)पाक्षिकसूत्र " वृत्ति (यशोदेव) २७०० " अवचूरि ६२१, १००० आगम और उनकी टीकाओं के परिणाम के उक्त निर्देश से यह पता चलता है कि बागम साहित्य कितना विस्तृत है। उत्तराध्ययन, दशवैकालिक, कल्पसूत्र तथा आवश्यकसूत्र-इनको टोकाओं की सूची भी काफी लम्बी है। सबसे अधिक टीकाएँ लिखी गई हैं कल्पसूत्र और आवश्यकसूत्र पर। इससे इन सूत्रों का विशेष पठन-पाठन सूचित होता है। जब से पर्युषण में संघसमक्ष कल्पसूत्र के वाचन को प्रतिष्ठा हुई है, इस सूत्र का अत्यधिक प्रचार हुआ। आवश्यक तो नित्य-क्रिया का ग्रन्थ होने से उस पर अधिक टोकाएँ लिसो जायँ यह स्वाभाविक है । आगमों का काल : आधुनिक विदेशी विद्वानों ने इस बात को माना है कि भले ही देवर्षि ने पुस्तक लेखन करके आगमों के सुरक्षा कार्य को आगे बढ़ाया किन्तु वे, जैसा कि Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002094
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1989
Total Pages348
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Canon, & Agam
File Size13 MB
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