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________________ अन्तकृतदशा २६३ में अतिमुक्तक नामक कुमारश्रमण ने मुझे कहा था कि तू ठीक एक समान आठ पुत्रों को जन्म देगी । देवकी ने सोचा कि उस मुनि का कथन ठीक नहीं निकला। वह एतद्विषयक स्पष्टीकरण के लिए तीर्थकर अरिष्टनेमि के पास पहुँची । अरिष्टनेमि ने बताया कि अतिमुक्तक की बात गलत नहीं है। ऐसा हुआ है कि सुलसा के मृत बालक पैदा होते थे। उसने पुत्र देनेवाले हरिणेगमेसी देव की आराधना की। इससे उसने तेरे जन्मे हुए पुत्र उठाकर उसे सौंप दिये व उसके मरे हुए बालक लाकर तेरे पास रख दिये। इस प्रकार ये छः मुनि वस्तुतः तेरे ही पुत्र है। यह सुनकर देवकी के मन में विचार हुआ कि मैंने किसी बालक का बचपन नहीं देखा अतः अब यदि मेरे एक पुत्र हो तो उसका बचपन देखू । इस विचार से देवकी भारी चिन्ता में पड़ गई । इतने में कृष्ण वासुदेव देवकी को प्रणाम करने आये । देवकी ने कृष्ण को अपने मन की बात बताई। कृष्ण ने देवकी को सान्त्वना देते हुए कहा कि मैं ऐसा प्रयत्न करूंगा कि मेरे एक छोटा भाई हो । इसके बाद कृष्ण ने पौषधशाला में जाकर तीन उपवास कर हरिणेगमेसी देव की आराधना की व उससे एक छोटे भाई की मांग की। देव ने कहा कि तेरा छोटा भाई होगा और वह छोटी उम्र में ही दीक्षित होकर सिद्धि प्राप्त करेगा। बाद में देवकी को पुत्र हुआ। उसी का नाम गज अथवा गजसुकुमाल है। गज का विवाह करने के उद्देश्य से कृष्ण ने चतुर्वेदज्ञ सोमिल ब्राह्मण की सोमा नामक कन्या को अपने यहां लाकर रक्खी। इतने में भगवान् अरिष्टनेमि द्वारका के सहस्रांबवन उद्यान में आये । उनका उपदेश सुनकर माता-पिता की अनुमति प्राप्तकर गज ने दीक्षा अंगीकार की। सोमा ऐसी ही रह गई । सोमिल ने क्रोधित हो श्मशान में ध्यान करते हए मुनि गजसुकुमाल के सिर पर मिट्टी की पाल बांधकर धधकते अंगारे रखे । मुनि शान्त भाव से मृत्यु प्राप्त कर अन्तकृत हुए। इस कथा में अनेक बातें विचारणीय हैं, जैसे पुत्र देनेवाला हरिणेगमेसी देव, क्षायिकसम्यक्त्वधारी कृष्ण द्वारा की गई उसकी आराधना और वह भी पौषधशाला में, देवकी के पुत्रों का अपहरण, अतिमुक्तक मुनि की भविष्यवाणी, भगवान् अरिष्टनेमि का एतद्विषयक स्पष्टीकरण आदि । दयाशील कृष्ण : तृतीय वर्ग में कृष्ण से सम्बन्धित एक विशिष्ट घटना इस प्रकार है : एक बार वासुदेव कृष्ण सदलबल भगवान् अरिष्टनेमि को वंदन करने जा रहे थे। मार्ग में उन्हें एक वृद्ध मनुष्य को ईंटों के ढेर में से एक-एक ईंट उठाकर ले जाते हुए देखा । यह देखकर कृष्ण के हृदय में दया आई । उन्होंने भी ईंटें उठाना शुरु किया । यह देखकर साथ के सब लोग भी ईंटें उठाने लगे। देखते ही देखते Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002094
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1989
Total Pages348
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Canon, & Agam
File Size13 MB
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