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________________ अष्टम प्रकरण उपासकदशा सातवें अंग उपासकदशामें भगवान महावीर के दस उपासकों-श्रावकों की कथाएँ हैं । 'दशा' शब्द दस संख्या एवं अवस्था दोनों का सूचक है। उपासकदशा में उपासकों की कथाएँ दस ही हैं अतः दस संख्यावाचक अर्थ उपयुक्त है। इसी प्रकार उपासकों की अवस्था का वर्णन करने के कारण अवस्थावाची अर्थ भी उपयुक्त ही है। इस अंग का उपोद्घात भी विपाक के ही समान है अतः यह कहा जा सकता है कि उतना उपोद्घात का अंश बाद में जोड़ा गया है। स्थानांग में उपासकदशांग के दस अध्ययनों के नाम इस प्रकार बताये गये हैं : आनंद, कामदेव. चूलणिपिता, सुरादेव, चुल्लशतक, कुंडकोलिक, सद्दालपुत्र, महाशतक, नंदिनी पिता और सालतियापिया-सालेयिकापिया । दसवा नाम उपासकदशांग में सालिहीपिया है जबकि स्थानांग में सालतियापिया अथवा सालेयिकापिता है । कुछ प्राचीन हस्तप्रतियों में लंतियापिया, लत्तियपिया, लतिणीपिया, लेतियापिया आदि नाम भी मिलते हैं। इसी प्रकार नंदिणीपिया के बजाय ललितांकपिया तथा सालेइणीपिया नाम भी आते हैं । इस प्रकार इन नामों में काफी हेरफेर हो गया है। समवायांग में अध्ययनों की ही संख्या दी है, नामों को १; (अ) अभयदेवकृत टोकासहित-आगमोदय समिति, बम्बई; सन् १९२०; धनपतसिंह, कलकत्ता, सन् १८७६. (आ) प्रस्तावना आदि के साथ-पी. एल. वैद्य, पूना, सन् १९३०. (इ) अंग्रेजी अनुवाद आदि के साथ-Hoernle, Bibliotheca Indica, Calcutta, 1885-1888. (ई) गुजराती छायानुवाद-पूंजाभाई जैन ग्रन्थमाला, अहमदाबाद,सन् १९३१. (उ) संस्कृत व्याख्या व उसके हिन्दी-गुजराती अनुवाद के साथ-मुनि घासीलाल, जैन शास्त्रोद्धार समिति, राजकोट, सन् १९६१. (ऊ) अभयदेवकृत टीका के गुजराती अनुवाद के साथ-भगवानदास हर्षचन्द्र, अहमदाबाद, वि. सं० १९९२. (ऋ) हिन्दी अनुवाद सहित-अमोलक ऋषि, हैदराबाद, वी. सं. २४४६. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002094
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1989
Total Pages348
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Canon, & Agam
File Size13 MB
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