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________________ ज्ञाताधर्मकथा २५३ आदि आचार को विनय कहा गया है। विनयपिटक आदि बौद्ध ग्रन्थों में विनय शब्द का इसी अर्थ में प्रयोग हुआ है। शुक-परिव्राजक की कथा में यापनीय, सरिसवय, कुलत्थ, मास इत्यादि द्वयर्थक शब्दों की भी अतीव रोचक चर्चा हुई है । थावच्चा सार्थवाही: प्रस्तुत पांचवें अध्ययन की इस कथा में थावच्चा नामक एक सार्थवाही का कथानक आता है । वह लौकिक एवं राजकीय व्यवहार व व्यापार आदि में कुशल थी। इससे स्पष्ट मालूम पड़ता है कि कुछ स्त्रियाँ भी पुरुष के ही समान व्यापारिक एवं व्यावसायिक कुशलता वाली थीं। इस ग्रन्थ में आनेवाली रोहिणी को कथा भी इस कथन की पुष्टि करती है। इस कथा में कृष्ण के राज्य की सीमा वैताढ्य पर्वत के अन्त तक बताई गई है। यह वैताढ्य पर्वत कौनसा है व कहाँ स्थित है ? एतद्विषयक अनुसंधान की आवश्यकता है । छठे अध्ययन का नाम 'तुंब' है । तुंब को कथा शिक्षाप्रद है । सातवें अध्ययन में जैसी रोहणी की कथा आती है वैसी ही कथा बाइबिल के नये करार में मथ्युकी और ल्यूक के संवाद में भी उपलब्ध होती है और आठवें अध्ययन में आई हुई रोहणी तथा मल्लि की कथा में स्त्रीजाति के प्रति विशेष आदर तथा उनके सामर्थ्य, चातुर्य आदि उत्तमोत्तम गुण भी वर्णित है। चोक्खा परिव्राजिका : ____ आठवें अध्ययन के मल्लि के कथानक में चोक्खा नामक एक सांख्यमतानुया-. यिनी परिव्राजिका का वर्णन आता है । यह परिव्राजिका वेदादि शास्त्रों में निपुण थी। उसकी कुछ शिष्याएं भी थीं। इनके रहने के लिए मठ था । चीन एवं चीनी : ____ मल्लि अध्ययन में "चीणचिमिढवंकभग्गनासं" इस वाक्य द्वारा किये गए पिशाच के रूप वर्णन के प्रसंग पर अनेक बार 'चीन' शब्द का प्रयोग हुआ है। यह प्रयोग नाक की छुटाई के सन्दर्भ में किया गया है। इससे यह कल्पना की जा सकती है कि कथा के समय में चीनी लोग इस देश में आ पहुँचे हों। डूबती नौका : ___नवें अध्ययन में आई हुई माकंदी की कथा में नौका का विस्तृत वर्णन है ।। इसमें नावसम्बन्धी समस्त साधन-सामग्री का विस्तार से परिचय दिया गया है। इस नवम अध्ययन में समुद्र में डूबती हुई नाव का जो वर्णन है वह कादम्बरी जैसे ग्रन्थ में उपलब्ध डूबती नौका के वर्णन से बहुत-कुछ मिलता-जुलता है। यह वर्णन काव्यशैली का सुन्दर नमूना है । दसवें तथा ग्यारहवें अध्ययन की कथाएँ उपदेशप्रद हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002094
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1989
Total Pages348
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Canon, & Agam
File Size13 MB
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