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________________ सूत्रकृतांग २११ वाक्य ऐसे हैं जो पूरी तरह से समझ में नहीं आते । वृत्तिकार ने तो अपनी पारम्परिक अनुश्रुति के अनुसार उनका अर्थ कर दिया है किन्तु मूल शब्दों का जरा गहराई से विचार करने पर मन को पूरा सन्तोष नहीं होता। इस अध्ययन में पापित्यीय उदय पेढालपुत्त एवं भगवान् महावीर के मुख्य गणधर गौतम इन्द्रभूति के बीच जो वाद-विवाद अथवा चर्चा हुई है उसकी पद्धति को दृष्टि में रखते हुए यह मानना अनुपयुक्त न होगा कि भगवान् पार्श्वनाथ की परम्परा वाले भगवान् महावीर की परम्परा को अपने से भिन्न परम्परा के रूप में ही मानते थे, भले ही बाद में पार्श्वनाथ की परम्परा महावीर की परम्परा में मिल गई । इस अध्ययन में एक जगह स्पष्ट लिखा है कि जब गौतम उदय पेढालपुत्त को मैत्री एवं विनयप्रतिपत्ति के लिए समझाने लगे तो उदय ने गौतम के इस कथन का अनादर कर अपने स्थान पर लोट जाने का विचार किया : तएणं से उदए पेढालपुत्ते भगवं गोयमं अणाढायमाणे जामेव दिसि पाउब्भूए तामेव दिसि पहारेत्थ गमणाए। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002094
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1989
Total Pages348
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Canon, & Agam
File Size13 MB
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