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सूत्रकृतांग
१८९ स्त्री परिज्ञा :
स्त्रीपरिज्ञा नामक चतुर्थ अध्ययन के दो उद्देशक हैं। पहले उद्देशक में ३१ एवं दूसरे में २२ गाथाएँ हैं । स्त्रीपरिज्ञा का अर्थ है स्त्रियों के स्वभाव का सब तरह से ज्ञान । इस अध्ययन में यह बताया गया है कि स्त्रियाँ श्रमण को किस प्रकार फंसाती हैं और किस प्रकार उसे अपना गुलाम तक बना लेती है। इसमें यहां तक कहा गया है कि स्त्रियाँ विश्वसनीय नहीं हैं। वे मन में कुछ और ही सोचती हैं, मुँह से कुछ और ही बोलती हैं व प्रवृत्ति कुछ और ही करती हैं । इस प्रकार स्त्रियाँ अति मायावी हैं। श्रमण को स्त्रियों का विश्वास कभी नहीं करना चाहिए। इस विषय में तनिक भी असावधानी रखने पर श्रमणत्व का विनाश हो सकता है। प्रस्तुत अध्ययन में स्त्रियों को जो निन्दा की गयी है वह एकांगी है। वास्तव में श्रमण की भ्रष्टता का मुख्य कारण तो उसकी खुद की वासना ही है । स्त्री उस वासना को उत्तेजित करने में निमित्त कारण अवश्य बन सकती है । वैसे सभी स्त्रियाँ एकसी नहीं होती। संसार में ऐसी अनेक स्त्रियाँ हुई हैं जो प्रातः स्मरणीय हैं। फिर जैसे स्त्रियों में दोष दिखाई देते हैं वैसे ही पुरुषों में भी दोषों की कमी नहीं है। ऐसी स्थिति में केवल स्त्री पर दोषारोपण करना उचित नहीं। नियुक्तिकार ने इस तथ्य को स्वीकार किया है और कहा है कि जो दोष स्त्रियों में है वे ही पुरुषों में भी हैं। अतः साधक श्रमण को पूरी तरह से सावधान रहना चाहिए । पतन का मुख्य कारण तो खुद के दोष ही हैं । स्त्री अथवा पुरुष तो उसमें केवल निमित्त है। जैसे स्त्रो के परिचय में आने पर पुरुष में दोष उत्पन्त होते हैं वैसे ही पुरुष के परिचय में आने पर स्त्री में भी दोष उत्पन्न होते हैं अतः वैराग्यमार्ग में स्थित श्रमण व श्रमणी दोनों को सावधानी रखनी चाहिए। यदि ऐसा है तो फिर इस अध्ययन का नाम 'स्त्रीपरिज्ञा' ही क्यों रखा ? 'पुरुषपरिज्ञा' भी तो रखना चाहिये था । इस प्रश्न का समाधान करते हुए चूर्णिकार व वृत्तिकार कहते हैं कि 'पुरिसोत्तरिओ धम्मो' अर्थात् धर्म पुरुषप्रधान है अतः पुरुष के दोष बताना ठीक नहीं । धर्मप्रवर्तक पुरुष होते है अतः पुरुष उत्तम माना जाता है। इस उत्तमता को लांछित न करने के लिए ही प्रस्तुत अध्ययन का नाम 'पुरुषपरिज्ञा' न रखते हुए 'स्त्रीपरिज्ञा' रखा गया। व्यावहारिक दृष्टि से टीकाकारों का यह समाधान ठीक है, पारमार्थिक दृष्टि से नहीं । सत्रकार ने प्रस्तुत अध्ययन में प्रसंगवशात् गृहस्थोपयोगो अनेक वस्तुओं तथा बालोपयोगी अनेक खिलौनों के नाम भी गिनाये हैं। नरकविभक्ति : - पंचम अध्ययन का नाम नरकविभक्ति है। चतुर्थ अध्ययनोक्त स्त्रीकृत
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