________________
जैन साहित्य का बृहद् इतिहास
ठाण नामक तृतीय अंग जैन तत्त्व-संख्या का निरूपण करने वाला है एवं समवाय नामक चतुर्थ अंग जैन तत्त्व के समवाय का अर्थात् बड़ी संख्या वाले तत्त्व का निरूपण करने वाला है।
वियाहपण्णत्ति-व्याख्याप्रज्ञप्ति नामक पंचम अंग का अर्थ ऊपर बताया जा चुका है । यह नाम ग्रन्थगत विषय के अनुरूप है।
णायाधम्मकहा-ज्ञातधर्मकथा नाम कथासूचक है, यह नाम से स्पष्ट है । इस कथाग्रन्थ के विषय में भी ऊपर कहा जा चुका है ।
उवासगदसा-उपासकदशा नाम से यह प्रकट होता है कि यह अंग उपासकों से सम्बन्धित है। जैन परिभाषा में 'उपासक' शब्द जैनधर्मानुयायी श्रावकोंगृहस्थों के लिए रूढ़ है। उपासक के साथ जो 'दशा' शब्द जुड़ा हुआ है वह दश-दस संख्या का सूचक है अथवा दशा-अवस्था का द्योतक भी हो सकता है। यहाँ दोनों अर्थ समानरूप से संगत हैं। उपासकदशा नामक सप्तम अंग में दस उपासकों की दशा का वर्णन है।
अंतगडदसा-जिन्होंने आध्यात्मिक साधना द्वारा राग-द्वेष का अन्त किया है तथा मुक्ति प्राप्त की है वे अन्तकृत हैं। उनसे सम्बन्धित शास्त्र का नाम अंतगडदसा-अंतकृतदशा है । इस प्रकार अष्टम अंग का अंतकृतदशा नाम सार्थक है ।
अणुत्तरोववाइयदसा-इसी प्रकार अनुत्तरोपपातिकदशा अथवा अनुत्तरौपपादिकदशा नाम भी सार्थक है । जैन मान्यता के अनुसार स्वर्ग में बहुत ऊँचा अनुत्तरविमान नामक एक देवलोक है। इस विमान में जन्म ग्रहण करने वाले तपस्वियों का वृत्तान्त इस अनुत्तरोपपातिकदशा नामक नवम अंग में उपलब्ध है । इसका 'दशा' शब्द भी संख्यावाचक व अवस्थावाचक दोनों प्रकार का है। ऊपर जो औपपातिक व औपपादिक ये दो शब्द आये हैं उन दोनों का अर्थ एक ही है । जैन व बौद्ध दोनों परम्पराओं में उपपात अथवा उपपाद का प्रयोग देवों व नारकों के जन्म के लिए हुआ है।
पण्हावागरणाई-प्रश्नव्याकरण नाम के प्रारंभ का 'प्रश्न' शब्द सामान्य प्रश्न के अर्थ में नहीं अपितु ज्योतिषशास्त्र, निमित्तशास्त्र आदि से सम्बन्धित अर्थ में प्रयुक्त हुआ है। इस प्रकार के प्रश्नों का व्याकरण जिसमें किया गया हो उसका नाम प्रश्नव्याकरण है । उपलब्ध प्रश्नव्याकरण के विषयों को देखते हुए यह नाम सार्थक प्रतीत नहीं होता। प्रश्न का सामान्य अर्थ चर्चा किया जाय अर्थात् हिंसा-अहिंसा, सत्य-असत्य आदि से सम्बन्धित चर्चा के अर्थ में प्रश्न शब्द लिया जाय तो वर्तमान प्रश्नव्याकरण सार्थक नाम वाला कहा जा सकता है।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org