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________________ द्वितीय प्रकरण अंग ग्रन्थों का बाह्य परिचय सर्वप्रथम अंगग्रंथों के बाह्य तथा अंतरंग परिचय से क्या अभिप्रेत है, यह स्पष्टीकरण आवश्यक है । अंगों के नामों का अर्थ, अंगों का पदपरिणाम अथवा लोकपरिणाम, अंगों का क्रम, अंगों की शैली तथा भाषा, प्रकरणों का विषयनिर्देश, विषयविवेचन की पद्धति, वाचनावैविध्य इत्यादि की समीक्षा बाह्य परिचय में रखी गई है । अंगों में चर्चित स्वसिद्धान्त तथा परसिद्धान्तसम्बन्धी तथ्य, उनकी विशेष समीक्षा, उनका पृथक्करण, तन्निष्पन्न ऐतिहासिक अनुसंधान, तदन्तर्गत विशिष्ट शब्दों का विवेचन इत्यादि बातें अंतरंग परिचय में समाविष्ट हैं । आगमों की ग्रन्थबद्धता : जैनसंघ की मुख्य दो परम्पराएँ हैं : अचेलक परम्परा व सचेलक परम्परा' । दोनों परम्पराएँ यह मानती हैं कि आगमों के अध्ययन-अध्यापन की परम्परा अखण्ड रूप में कायम न रही | दुष्काल आदि के कारण आगम अक्षरशः सुरक्षित न रखे जा सके । आगमों में वाचनाभेद - पाठभेद बराबर बढ़ते गये । सचेलक परम्परा द्वारा मान्य आगमों को जब पुस्तकारूढ किया गया तब श्रमण संघ ने एकत्र होकर जो माथुरी वाचना मान्य रखी वह ग्रन्थबद्ध की गई, साथ ही उपयुक्त वाचनाभेद अथवा पाठभेद भी लिखे गये । अचेलक परम्परा के आचार्य धरसेन, यतिवृषभ, कुंदकुंद, भट्ट अकलंक आदि ने इन पुस्तकारूढ आगमों अथवा इनसे पूर्व के उपलब्ध आगमों के आशय को ध्यान में रखते हुए नवीन साहित्य का सर्जन किया । आचार्य कुंदकुंदरचित साहित्य में आचारपाहुड, सुत्तापाहुड, स्थानपाहुड, समवायपाहुड आदि पाहुडान्त ग्रन्थों का समावेश किया जाता है । इन पाहुडों के नाम सुनने से आचारांग, सूत्रकृतांग, स्थानांग, समवायांग आदि की स्मृति हो आती है | आचार्य कुंदकुंद ने उपर्युक्त पाहुडों की रचना इन अंगों के आधार से की प्रतीत होती है । इसी प्रकार षट्खण्डागम, जयधवला, महाघवला आदि ग्रन्थ भी उन-उन आचार्यों ने आचारांग से लेकर दृष्टिवाद तक के आगमों के आधार से बनाये हैं । इनमें स्थान-स्थान पर परिकर्म आदि का निर्देश किया १. यहाँ अचेलक शब्द दिगम्बरपरम्परा के लिए और सचेलक शब्द श्वेताम्बरपरम्परा के लिए प्रयुक्त है। ये ही प्राचीन शब्द हैं जिनसे इन दोनों परम्पराओं का प्राचीन काल में बोध होता था । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002094
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1989
Total Pages348
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Canon, & Agam
File Size13 MB
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