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प्रस्तुत पुस्तक में
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१. प्रस्तावना २. जैन श्रत....
जैन श्रमण व शास्त्रलेखन अचेलक परम्परा व श्रुतसाहित्य श्रुतज्ञान अक्षरश्रुत व अनक्षरश्रुत " सम्यक्श्रुत व मिथ्याश्रुत सादिक, अनादिक, सपर्यवसित व अपर्यवसित श्रुत .... गमिक-अगमिक, अंगप्रविष्ट-अनंगप्रविष्ट व कालिक
उत्कालिक श्रुत ३. अंगग्रन्थों का बाह्य परिचय
आगमों की ग्रन्थबद्धता .... अचेलक परम्परा में अंगविषयक उल्लेख अंगों का बाह्य रूप ..." नाम-निर्देश आचारादि अंगों के नामों का अर्थ . .. अंगों का पद-परिमाण " पद का अर्थ अंगों का क्रम अंगों की शैली व भाषा ..." प्रकरणों का विषयनिर्देश ..." परम्परा का आधार ..." परमतों का उल्लेख विषय-वैविध्य
जैन परम्परा का लक्ष्य ४. अंगग्रन्थों का अंतरंग परिचय : आचारांग
विषय अचेलकता व सचेलकता ""
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