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________________ ७९ अंत (ऋषि) चौथमल - जगन्नाथ स्तवन लिखे है। संभव जिन स्तव- (७ कडी सं० १८०७ आसो) का आदि- "सकल सुरासुर सेवित शंकर किंकर जस नरराया जी।" “संवत् अठार मुनि आसु मासे, गणी जग-जग जीवन जयकारी संभव।" रचनायें प्राय: छोटी हैं। दूसरा स्तव है ‘मल्ली स्तव' (७ कड़ी सं० १८१४) इसकी प्रारम्भिक पंक्ति है "मल्ली जिणेसर साहिबा रे, सिद्ध साध्य करण जग स्वामि रे, जी।" अंत- "सं० १८१४ समे रे लो, गुण गाया मल्लि जिणंद रे। गणि जगजीवन गुण स्तवे रे, देव आयो अधिक आणंदरे।" इनकी रचनाओं में भर्ती के शब्द रे, लो, जो आदि अधिक मिले है। ऋषभ स्तव (११ कड़ी सं० १८१५, आसो)। आदि- “विमल नयर वनिता वर वदीओ। अंत- "पोरबंदर संघ कर सोहे, गुरु भक्ति करे मान भावे; संवत् अठार सिद्ध श्रावण मासे, जगजीवन गुण गावे।" नेम स्तव (८ कड़ी, सं० १८२५, आसो) का आदि- “नेमीकुंवर जिनवर गाऊं, आतमरमण पूरण पाऊं।" अंत- “सं० १८२५ से वरसें, जिनगुण स्तव्या आसू मासे; गणि जगजीवन उल्लासे रे, नेमि।"११५ जगन्नाथ यह कीर्तिरत्न सूरि शाखा के संत इलासुंदर के शिष्य थे। इन्होंने 'चंपकमाला चौ०' की रचना सं० १८२२ सांचौर में ४७ ढालों में की। इसकी ७० पन्नों की प्रति घेपर पुस्तकालय सुजागनढ़ में उपलब्ध है, उदाहरण अनुपलब्ध है।११६ जड़ाव जी इनका जन्म १८९८ में सेठों की रीयां में हुआ। किशोरावस्था में विधवा हो गई और चौबीस वर्ष की वय में सं० १९२२ में इन्होंने आचार्य रत्नचंद्र के संप्रदाय Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002093
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1999
Total Pages326
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size11 MB
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