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________________ ४६ हिन्दी जैन साहित्य का बृहद् इतिहास पंचाशिका सं० १८०४ आपकी प्राप्त गद्य रचनाये हैं। पूजा पंचाशिका भी संभवत: आप की ही रचना है, इन रचनाओं के गद्य नमूने नहीं उपलब्ध हो सके। उदयसोम सूरि आप लघु तपागच्छीय सूरि आनंदसोम के पट्टधर थे। आपने 'पर्युसण व्याख्यान सस्तवक' सं० १८९३ और श्रीपाल रास सं० १८९८ आसो मास, परेंडा में रची। श्रीपाल रास चार खण्डों का विशाल ग्रंथ है इससे कुछ उद्धरण आगे दिए जा रहे हैं श्रीपालरास के चतुर्थ खण्ड की प्रारंभिक पंक्तियाँ निम्नलिखित हैं "चोथो खंड रचूं हवे, श्री सिद्धचक्र पसाय, भाषण च्यारे मांहवे अज गाडर मसी गाय | रचनाकाल एवं स्थान से संबंधित पंक्तियाँ इस प्रकार हैं परेंडा सहेर मां पूरण कीधो, भविक श्रवण मन ध्याया, अठार अठाणुं आसो ऊडी मां ओ अधिकार बचाया रे । " परंडा सूरत के पास कोई गाँव होगा। आसो ऊडी से संभवत: कवि का आशय आषाढ़ मास से है। इसकी अंतिम पंक्तियाँ निम्नवत् हैं “लघु पोषधशाले स तपागण सडसठ पाट सवाया, श्री आनंदसोम सूरि पट्टधर री उदयसोम सूरिराया रे, सुरत संजति श्रावक आग्रहे, सुगम अर्थ समजाया, चोथे खंड रच्यो मनरंगे, सांभलता सुख पाया रे । ४७ उद्योतसागर सूरि तपागच्छीय पुण्यसागर, ज्ञानसागर के शिष्य थे। आपने अनेक रचनायें की हैं जिनका संक्षिप्त विवरण दिया जा रहा है २१ प्रकारी पूजा सं० १८२३ का आदि "स्वस्ति श्री सुख पूरवा कल्पवेली अनुहार, पूजा भक्ति जिन नी करों, अकवीस भेव विस्तार | रचनाकाल — संवत् गुण युग अचल इंदु, हर्ष भरि गाइयो श्री जिनेन्दु, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002093
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1999
Total Pages326
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size11 MB
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