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हिन्दी जैन साहित्य का बृहद् इतिहास उत्तम मुनि
___आपकी एक रचना 'नेमि स्नेह बेलि' का उल्लेख उत्तमचंद कोठारी ने अपनी सूची में किया है। यह रचना सं० १८८९ में रचित है। इससे अधिक विवरण उन्होंने नहीं दिया।३४ उत्तमविजय
___ इसी शताब्दी में इस नाम के तीन लेखकों का विवरण मिलता है उनका विवरण क्रमशः आगे दिया जा रहा है। उत्तमविजय१
आप तपागच्छीय सत्यविजय, कपूरविजय, क्षमाविजय, जिनविजय के शिष्य थे। अहमदाबाद के श्यामलापोल मुहल्ले के निवासी श्री लालचंद की भार्या माणेक बेन की कुक्षि से सं० १७६० में आपका जन्म हुआ था। जन्म नाम पुंजा शा था। १७७८ में जब खरतरगच्छीय प्रसिद्ध संत देवचंद जी अहमदाबाद पधारें तो उनके सानिध्य में तत्त्व ग्रंथों का अभ्यास किया। शाह कचराकीका के साथ समेत शिखर की संघयात्रा में गये और वहाँ से अन्य तीर्थों की यात्रा करते सूरत होते हुए पुन: अहमदाबाद आये और ज्ञानविमल सूरि संतानीय जिनविजय जी का सत्संग करते रहे। अंतत: सं० १७९६ वैशाख शक्ल ६ को इन्होंने विधिवत दीक्षा ली और नाम उत्तमविजय पड़ा। इन्होंने गुरु के सान्निध्य में अनेक धर्म ग्रंथों जैसे भगवती सूत्र आदि का विधिवत् अध्ययन किया। १७९९ में जिनविजय जी के देहावसानोपरांत ये देवचंद जी से विद्याभ्यास करते रहे।
इन्होंने अनेक तीर्थ यात्रायें, संघ यात्रायें की, लोगों को धर्मोपदेश दिया और ६७ वर्ष की वय में सं० १८२७ महा शुक्ल ८ को शरीर त्याग किया। आपने अपने गुरु के निर्वाण पर 'जिनविजय निर्वाण रास' १६ ढालों में सं० १७९९ श्रावण शुक्ल १ के थोड़े समय पश्चात् रचा जिसका आदि इस प्रकार है
"कमलमुखी श्रुतदेवता, पूरो मुज मूखवास,
गुणदायक गुरु गावता, होय सफल प्रयास। अंत- “षटकाय पालक सुमति दायक, पापनिवारक जग-जय करो
संवेगरंगी सज्जनसंगी जिन विजय गुरु जयगुण करो, मानविजय गुरु कहण थी रच्यों गुरु निर्वाण अ, सकल शिष्य उत्साह उत्तमविजय कोडि कल्याण ।"३५ यह रास जैन ऐतिहासिक रास माला में प्रकाशित है।
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