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हिन्दी जैन साहित्य का बृहद् इतिहास वैशाख सुदि पंचमी कवीवार, भाषाबंध रच्यो जीवविचार।"२५ 'समकित कौमुदी चतुष्पदी' सं० १८२२ मागसर शुक्ल ४, मुर्शिदाबाद, इसमें भी ऊपर दी गई गुरुपरम्परा का उल्लेख है। यह चतुष्पदी भी शाह सुगालचंद के आग्रह पर आलमचंद ने की है। रचनाकाल- संवत अठारे से बावीस, मिगसिर मास जगीसे जी,
शुकल पख्य तीथ चउथ शुदि ने सिद्धि योग मन हीसे जी। ओ संबंध रच्यो सुखकारी में माहरी मतिलारे जी,
मकसुदाबाद सुसहर मझारे, भवीयण ने उपगारे जी।"२६
श्री अगरचंद नाहटा ने भी १९वीं शती के प्रमुख रचनाकारों में इनका नाम गिनाया है।२७
आसकरण
ये रायचंद के शिष्य एवं पट्टधर थे। इनका जन्म स्थान जोधपुर का तिवरी ग्राम था। जन्म सं० १८१२ मार्गशीर्ष कृष्ण पक्ष द्वितीया को हुआ। पिता का नाम रुपचंद और माता का नाम भोगा दे था। सं० १८३० वैशाख कृष्ण पंचमी को इन्होंने आचार्य जयमल से दीक्षा ग्रहण की। ७० वर्ष की आयु में सं० १८९२ कार्तिक कृष्ण पंचमी को इनका स्वर्गवास हुआ। ये प्रसिद्ध कवि और संयमी साधु थे। आचार्य रायचंद के पश्चात् सं० १८६८ में ये आचार्य पद पर प्रतिष्ठित हुये थे। इन्होंने पर्याप्त रचनायें की। इनकी रचना 'छोटी साधु वंदना' का जनता में व्यापक प्रसार हुआ था। दस श्रावकों की ढाल, पुण्य वाणी ऊपर ढाल, केशी गौतम चर्चा ढाल, साधुगुण माला, भरत जी री सिद्धि, नेमिराय जी सप्तढालिया, श्री घनाजी की सात ढालां, जयघोष की सात ढाल, श्री तेरा काठिया की ढाल, राजमती संज्झाय, पार्श्वनाथ स्तुति, श्री पार्श्वनाथ चरित्र, गजसिंह का चौढालिया, श्री अठारह नाता की चौढालिया और पूजा श्री रायचंद जी महराज के गुणों की ढाल' आदि आपकी अनेक रचनायें उपलब्ध हैं।२८
श्री मो० द० देसाई ने इन्हें लोकागच्छीय जेमल जी की परम्परा में रायचंद ऋषि का शिष्य बताया है। इनकी एक रचना 'नेमि राजा ढाल' (सं० १८३९ पो० शु० १३. जैन विविध ढाल संग्रह में जेठमल शेठिया द्वारा प्रकाशित हुई है। चूदंडी ढाल नामक रचना की भी वही तिथि रचनाकाल में बताई गई है, दोनों दो रचनायें नहीं है। देसाई ने जैन गुर्जर कवियों के प्रथम संस्करण में इन्हें रामचन्द्र का शिष्य लिखा था।२९ किन्तु नवीन संस्करण के संपादक श्री जयंत कोठारी ने इन्हें रायचंद का ही शिष्य बताया
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