SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 294
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ उपसंहार २८३ में पर्यवसित हो जाता है। अपभ्रंश के प्रसिद्ध जैन कवि स्वयंभू के महाकाव्य ‘पउमचरिउ' में लक्ष्मण को शक्ति लगने पर स्वयं पद्मराम जब करुणा समुद्र में ऊभचूभ करने लगते हैं तभी उन्हें जीवन की नश्वरता और शरीर की क्षणभंगुरता का बोध होता है और वे तत्क्षण परमशान्ति प्राप्त कर लेते हैं। इसी प्रकार स्थूलिभद्र घोर शृंगारी नायक थे किन्तु अंत में कोशा वेश्या के प्रसंगोपरांत वे परमसंयमी, निष्काम तथा अनासक्त हो जाते हैं। इस प्रकार साहित्य द्वारा व्यक्ति के मुक्ति की साधना का मार्ग प्रशस्त किया गया है। जैन कवियों ने कर्म के साथ साहित्य का सुंदर समन्वय किया है। स्वयंभू, पुष्पदंत, जोइन्दु, धनपाल, शालिभद्रसूरि, विनयप्रभसूरि, मेरुनन्दन, समयसुंदर, हीरविजय, यशोविजय आदि अनेक श्रेष्ठ जैन कवियों को साहित्य से खारिज करके हम अपने पैरों पर स्वयं कुल्हाड़ी नहीं मार सकते। . जैन साहित्य में अन्य भाषा-साहित्य की भाँति धर्मोपदेश, नियमव्रत संबंधी उपदेश और श्रावकाचार परक पुष्कल साहित्य भी है किन्तु समस्त जैन साहित्य इसी कोटि का निश्चय ही नहीं है। वह विपुल और बहुआयामी है। धार्मिक और दार्शनिक विषयों पर उन्होंने प्रचुर सरस काव्य, नाटक, रास, चतुष्पदी चरित आदि भी लिखे हैं। यह विशाल साहित्य शास्त्र भण्डारों में बन्द पडा था। इसकी जानकारी वृहत्तर पाठक समाज की देने का श्रेय सर्वप्रथम यूरोपीय विद्वानों को है। सन् १८४५ में अंग्रेज विद्वान् ने वरुरूचि के प्राकृत प्रकाश का सुसंपादित संस्करण प्रकाशित करके इसका श्री गणेश किया। इसके बाद जर्मन पंडित पिशेल ने १८७७ ई० में हेमचन्द्राचार्य के हिद्ध हेम का संपादन-प्रकाशन करके प्राकृत-अपभ्रंश के अध्ययन की नींव डाली। जैकोबी ने समराइच्च कहा, पउमचरिउ की भूमिकाओं के साथ उनका संपादन-प्रकाशन करके इन ग्रंथों के काव्य पक्ष की तरफ पाठकों का ध्यान आकृष्ट किया। भारतीय विद्वानों ने भी इस तरफ प्रयत्न प्रारम्भ किया और महत्वपूर्ण कार्य किया। उनमें हरप्रसाद शास्त्री, पी०डी० गुणे, प्रो० हीरालाल जैन, राहुल सांकृत्यायन, भायाणी, बागची, देसाई और मुनि जिन विजय, उपाध्ये तथा नाहटा आदि ने महत्वपूर्ण योगदान किया है। अब तो भण्डार भी खुल गये हैं, विद्वान् भी प्रयत्नशील हो गये हैं अत: आशा है कि निरंतर नये-नये ग्रंथों की खोज, शोध, संपादन-प्रकाशन से इसके अध्ययन का क्षितिज क्रमश: विस्तृत होता जायेगा। जैन साहित्य का मूल्य- (जन साहित्य) इस साहित्य की कुछ बहुमूल्य विशेषतायें हैं जिन्होंने इसे समग्र भारतीय साहित्य Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002093
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1999
Total Pages326
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy